________________
ही दूने-तिगुने समर्पण और पुरुषार्थ के साथ करना है। मुट्ठीभर हिंसक संगठित होकर पूरे विश्व को हिला रहे हैं तो करोड़ों अहिंसक संगठित होकर क्या मानवता की रक्षा नहीं कर सकता? इस भयावह स्थिति से निपटने का एक मात्र उपाय है अहिंसक चेतना का अधिक से अधिक विकास। जब सभी द्वार बंद दिखें तो अहिंसा का रास्ता ही एक मात्र ऐसा रास्ता है जो संभावना के नये द्वार खोल सकता है। हिंसा-रक्तपात के वातावरण में भी जीवन की शांति की बात कर सकता है, विवेक जगा सकता है।
दो विश्व युद्ध हो चुके हैं। द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका लोग देख चुके हैं। कहते हैं कि चौथा विश्व युद्ध कभी नहीं होगा क्योंकि यदि तृतीय विश्व युद्ध हुआ तो कोई बचेगा ही नहीं कि चौथे की सोच सकें। इसलिए यह जरूरी हो गया है कि हिंसा के अहिंसक विकल्प खोजे जायें। उनका प्रयोग किया जाय, उन पर अमल किया जाय। तभी समस्त जीवधारियों का अस्तित्व बच सकता है। जीवन सुरक्षित रह सकता है। अन्यथा जिस दिन आतंकियों ने उन राष्ट्रों पर अपना कब्जा कर लिया जिसने परमाणु बना रखे हैं, वह दिन मानवता का अंतिम दिन होगा। युद्ध में अहिंसा के प्रयोग की प्रथम घटना
अहिंसा की चर्चा सदा से चलती आयी है, लेकिन जब से राजनैतिक क्षेत्र में इसका प्रवेश हुआ है तब से वह अधिक विमर्शणीय हो गयी है। प्राचीनकाल के भी कुछ उदाहरण हैं जब युद्ध में अहिंसा की चर्चा करके उसे टाला गया। राजा ऋषभदेव के पुत्र भरत छह खण्ड का राज्य जीतकर चक्रवर्ती बनना चाहते थे किन्तु उन्हीं के लघुभ्राता बाहुबली अपने राज्य के साथ उनकी अधीनता स्वीकार न कर सके, युद्ध की नौबत आ गयी। दोनों ओर विशाल सेनायें और दो सगे भाई भीषण युद्ध को तैयार। तभी अहिंसा का स्वर गूंजा कि दो भाईयों के युद्ध में हजारों-लाखों निर्दोष सैनिकों का संहार क्यों? यह तर्क सभी को
(
v)