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नवम अध्याय
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साथ-साथ नागरिकों को अभय भी करे। आचार्य विनोबा कहते हैं कि 'जिनका विश्वास अहिंसा में है, उनको लोकनीति की स्थापना में अपनी शक्ति लगानी चाहिए, जिससे राजनीति को समाप्त कर लोकनीति स्थापित हो ।'
जनलोकपाल बिल की वकालात करने वाले अन्ना जी ने भी सच्ची लोकनीति के लिए सन् 2011 से विशाल स्तर पर अहिंसक आन्दोलन शुरु किया है।
सर्वप्रथम राजनीति में Spiritualization शब्द का प्रयोग गोपालकृष्ण गोखले जी ने किया था। गाँधीजी ने भी इस विचार को बार-बार रखा। यह कोशिश पहली बार हुई हो ऐसा नहीं है। इतिहास में कई बार इस तरह के प्रयत्न हुए हैं। बहुत से विचारक यह मानते हैं कि समाज के विकास में ऐसा बिन्दु आ जाए जब दण्ड के आधार पर शासन चलाने की आवश्यकता न
रहे ।
प्राचीनकाल में तीर्थंकर ऋषभदेव जब राजा थे उस समय 'हा', 'मा', 'धिक' की अहिंसक दण्डनीति ही पर्याप्त थी। इस ध्येय को साम्यवादी भी मानते हैं। कुछ विचारक ऐसे भी हैं, जो यह मानते हैं कि समाज में दण्ड की आवश्यकता सदैव है; इसलिए शासन भी सदैव रहेगा। दण्डशक्ति को एक स्थान देना तो आवश्यक हो सकता है किन्तु अहिंसक राज्य व्यवस्था में मुख्य स्थान सेवा का रहना चाहिए जबकि दण्ड और सत्ता का स्थान दूसरा होना चाहिए।
वर्तमान चुनाव पद्धति में जातिवाद, सम्प्रदायवाद जैसे अनेक हिंसक व्यापार जुड़े हुए हैं। इसे अहिंसक बनाने के लिए अनेक प्रकार से प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है। अहिंसक राजनीति के लिए सत्ता का विकेन्द्रीकरण आवश्यक है, जिससे शासक निरङ्कुश न हो और एक व्यक्ति के अहं को मौका न मिले। पंचायती राज की व्यवस्था इसका ज्वलन्त समाधान है।