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अष्टम अध्याय
115 भावना को पकड़ा है तथा गहन शोध के उपरान्त अहिंसा प्रशिक्षण की एक प्रविधि तैयार की है। इस प्रशिक्षण के कई प्रयोग भी किए जा चुके हैं तथा उसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं लेकिन बिना किसी सरकारी अनुदान के यह क्रान्ति मात्र सामाजिक सहयोग से चल रही है।
अहिंसा प्रशिक्षण का स्वरूप
अहिंसा प्रशिक्षण की अवधारणा एक प्रायोगिक अवधारणा है। आधुनिक युग में आचार्य श्री तुलसी तथा आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने अपने अनेक ग्रन्थों, लेखों तथा हजारों प्रवचनों के माध्यम से अहिंसा प्रशिक्षण की अवधारणा को रखा है। जीवन विज्ञान तथा प्रेक्षाध्यान के माध्यम से कई प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाये हैं। उन्हीं के द्वारा प्रतिपादित अहिंसा प्रशिक्षण की अवधारणा को एक विस्तृत तथा व्यवस्थित प्रविधि देने का प्रयास पुस्तक 'अहिंसा प्रशिक्षण' में किया है। उसी के आधार पर यह अवधारणा यहाँ प्रस्तुत है। प्रशिक्षण का आधार
अहिंसा प्रशिक्षण का आधार है - हिंसा के बीजों को प्रसुप्त बनाकर, अहिंसा के बीजों को अंकुरित करना। इसके लिए प्रशिक्षण आवश्यक है। अहिंसा प्रशिक्षण की प्रक्रिया के दो चरण हैं -
1. सैद्धान्तिक बोध, 2. प्रायोगिक अभ्यास।
अहिंसा के सैद्धान्तिक बोध के अन्तर्गत हिंसा के कारण, परिणाम एवं उपाय का प्रशिक्षण समाविष्ट है, जिससे व्यक्ति की अवधारणाओं का परिष्कार हो और उसके साथ-साथ प्रायोगिक अभ्यास भी चले।
1.
अहिंसा प्रशिक्षण, संपादक - मुनि धर्मेश, प्रका. जैन विश्वभारती, लाडनूं, प्रथम संस्करण, 1994