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न जाऊं, मेरी दुर्गति न हो' यह चिंतन बहुत विरल आत्माओं में, पवित्र आत्माओं में प्रस्फुरित होता है। अन्यथा दिमाग प्रिय-अप्रिय व्यवहार में उलझा रहता है, दिन-रात गुना भाग में लगा रहता है। यह प्रश्न जिसके मन में जाग जाता है, वह विलक्षण बन जाता है। श्रावक-श्राविका ही नहीं, साधु-साध्वियों के लिए बड़ा दुर्लभ है यह चिन्तन।
क्या हम अपने आपसे यह पूछते हैं-वह कौन सा कर्म है, जिसे प्राप्त कर मैं दुर्गति में न जाऊं, मेरी दुर्गति न हो।' यह चिन्तन तब जगता है जब यह अनुभूति होती है-यह संसार अध्रुव है, अशाश्वत है। ___ संसार एक प्रवाह है। व्यक्ति आता है, चला जाता है। जो आज से १०० वर्ष पहले था, पता नहीं वह आज कहां है? कितने लोग शतायु होते हैं? १५० वर्ष का मनुष्य तो पूरे हिन्दुस्तान में भी कोई मुश्किल से मिलेगा? इस समूची दुनिया में १२५-१५० वर्ष का आदमी कोई विरल ही हो सकता है। एक प्रवाह चल रहा है। व्यक्ति आता है, कुछ वर्ष जीता है और चला जाता है। किन्तु जब व्यक्ति आता है, जीवनयापन करता है, उस समय एक ऐसा नशा रहता है कि व्यक्ति सोचता ही नहीं है मुझे भी जाना है।
एक बार हम लोग दिल्ली में थे। एक प्रसिद्ध उद्योगपति का लड़का बहुत बार आता था। उससे बातचीत की। उसने कहा-'मैं एक प्रश्न आपसे पूछना चाहता हूं।'
मैंने कहा-बोलो, क्या प्रश्न है तुम्हारा?'
'मेरा प्रश्न यह है कि हम लोग इतने बड़े-बड़े कारखाने लगा रहे हैं। चार हजार करोड़ का कारखाना, आठ हजार करोड़, दस हजार करोड़ की फैक्ट्री, आखिर क्या होगा?'
मैंने कहा-'जो सारी दुनिया का हुआ है, वही तुम्हारा होगा। नया कुछ नहीं होगा। आखिर अंतिम शरण जो है, वह सबकी एक है। श्मशानं शरणं गच्छामि-अंतिम शरण है श्मशान।' फिर भी आदमी में एक ऐसा नशा रहता है कि वह सोचता नहीं है। ___बहुत सुंदर कहा गया दुःखपउराए-इस संसार में प्रचुर दुःख है। दुःख की कोई कमी नहीं है। शारीरिक दुःख, मानसिक दुःख, भावनात्मक दुःख–दुःख पर दुःख आते रहते हैं। इन दिनों एक स्थिति बनी–वृद्धा मां जीवित है, युवा पुत्र का स्वर्गवास हो गया। मां का मन आंदोलित हो गया। वह पुत्र के वियोग में शोकविह्वल हो गई। कुछ समय पश्चात् दूसरे पुत्र ने भी चिर विदाई ले ली। मां के दुःख का कोई माप हो सकता है? इस संसार में एक के बाद एक दुःख आते रहते हैं।
कुछ दिन पहले एक परिवार आया, परिवार के सदस्यों ने अपने दुःख की गाथा कही-आचार्यश्री! बूढ़ा बाप तो जीवित है और युवा पुत्र चला गया।' ____ मैंने कहा-'कौनसी आश्चर्य की बात है। यह संयोग-वियोग की दुनिया है। इसमें सब कुछ हो सकता है। न हो तो आश्चर्य है। हो तो कोई आश्चर्य नहीं।' एक संस्कृत कवि ने कितना सटीक लिखा है
उद्घाटितनवद्वारे, पंजरे विहगोनिलः।
यत्तिष्ठति तदाश्चर्यं, प्रयाणे विस्मयः कुतः।। यह शरीर रूपी पिंजरा, जिसके एक नहीं, नौ दरवाजे उद्घाटित हैं। पिंजरा एक, दरवाजे नौ। दरवाजा
गाथा परम विजय की