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________________ भी न जाने कितनी तेज गति उनकी हो जाती थी। उस समय साधन कम थे, अपने पैरों पर भरोसा करना होता था इसलिए उसके विकास का प्रयत्न होता था । अब साधन ज्यादा हो गये, पैरों की चिंता कहां है ? हाथी भी बहुत तेज चलता है, घोड़े भी बहुत तेज चलते हैं। हाथी की गति तो बहुत तीव्र होती है, इतना भारी शरीर है पर दौड़ता है तो कहते हैं सांप को भी पीछे छोड़ देता है। सांप की गति बड़ी तेज होती है पर हाथी सांप से भी आगे निकल जाता है। - सम्राट् श्रेणिक आदि सब तेज गति से चले और चलते-चलते शीघ्र राजगृह के परिपार्श्व में पहुंच गये। श्रेणिक ने कहा-'कल शुभ मुहूर्त में राजगृह में प्रवेश होगा। यह सामान्य आगमन नहीं है, यह विजययात्रा का भव्य समारोह के साथ प्रवेश है। इसमें जम्बूकुमार अग्रणी रहेगा। आज सम्राट् श्रेणिक नहीं, जम्बूकुमार विजयी होकर आया है। उसने इतना बड़ा काम किया है। यह विजय यात्रा जम्बूकुमार की है।' श्रेणिक ने अधिकारियों को बुलाया, कहा- 'जाओ, पूरे राजगृह में घोषणा कर दो-कल विजय यात्रा संपन्न कर जम्बूकुमार आ रहा है। सम्राट् श्रेणिक उसके साथ रहेंगे।' जिसमें शक्ति होती है, जिसमें विशेषता होती है, वह अपने आप आगे आ जाता है। 'जम्बूकुमार महान् विजय के पश्चात् राजगृह में आ रहा है। उसका भव्य प्रवेश है। सम्राट् श्रेणिक भी उसके साथ रहेंगे। एक अलौकिक दृश्य होगा- पूरे नगर में पटह वादन के साथ यह घोषणा हो गई। लोगों के मन में जिज्ञासा जाग गई । सम्राट् श्रेणिक को सब जानते थे । जम्बूकुमार को सब नहीं जानते थे। राजगृह बहुत बड़ा नगर था। आस-पास के लोग, मोहल्ले के लोग जानते थे, और भी कुछ लोग जानते थे पर सब लोग जम्बूकुमार को कैसे जानते ? जम्बूकुमार के सम्मान-पूर्वक प्रवेश की सूचना से वातावरण में विस्मय और जिज्ञासा का ज्वार आ गया-कौन है जम्बूकुमार? ८४ क्या वही जम्बूकुमार है, जिसने पट्टहस्ती को वश में किया था ? उसने कहां विजय प्राप्त की है ? क्या वह कोई अलौकिक व्यक्ति है ? जिस व्यक्ति का सर्व शक्तिसंपन्न सम्राट् सम्मान कर रहा है, कैसा विलक्षण है वह पुरुष ? m गाथा परम विजय की
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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