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गाथा परम विजय की
रत्नचूल ने कहा-'कुमार! यदि आप आज्ञा दें तो मैं भी सम्राट् श्रेणिक को देखना चाहता हूं। मेरी इच्छा है कि मैं श्रेणिक से मिलूं, साक्षात्कार करूं। क्या आप मुझे ले जाना चाहेंगे?'
जम्बूकुमार ने उत्साह और उल्लास व्यक्त करते हुए कहा- 'विद्याधरपति ! आपका स्वागत है। आपसे मिलकर सम्राट् श्रेणिक को प्रसन्नता होगी । '
सारा वातावरण बदल गया। जब आवेश का वातावरण होता है, चिंतन दूसरे प्रकार का होता है, सारा ध्यान वैर-विरोध में, एक-दूसरे को मारने में लगता है। जब वैर-विरोध मिट जाता है, मैत्री हो जाती है तब स्थिति बिल्कुल भिन्न हो जाती है पर यह काम बहुत कठिन है। आदमी के दिमाग में एक ऐसी रूढ़ धारणा होती है कि सहसा उसको तोड़ना संभव नहीं होता।
मेवाड़ की घटना है। पूज्य गुरुदेव एक गांव में पधारे। वहां किसी भाई ने बताया–'गुरुदेव! यहां के एक प्रमुख श्रावक हैं, भाई-भाई में इतना विरोध है कि आपस में बोलते तक नहीं हैं। काम में बड़ी बाधा आती है।'
गुरुदेव ने बात की, कहा- 'श्रावकजी! अब इस लड़ाई-झगड़े को समाप्त करो, भाइयों में ऐसा संघर्ष शोभा नहीं देता । '
वह भाई बोला-'गुरुदेव ! यह तो नहीं होगा । '
गुरुदेव ने कहा- 'पक्के श्रावक हो। गांव का उत्तरदायित्व रखते हो, सब कुछ करते हो और यह नहीं कर सकते ?'
'गुरुदेव! सब कुछ होता है पर यह तो नहीं होगा ।'
"कैसी बात करते हो ? गुरु की बात पर ध्यान नहीं देते ?'
'ध्यान क्या, आप कहें तो धूप में खड़ा खड़ा सूख जाऊं पर भाई से तो खमतखामणा नहीं करूंगा।'
आवेश का काम जटिल होता है। नहीं मानी बात, चला गया। जाने के बाद कुछ आवेश शांत हुआ, सोचा- आज तो ठीक नहीं हुआ। गुरुदेव ने इतना कहा और मैंने आशातना कर दी, अविनय किया। मन बदला, दिमाग भी ठंडा हुआ, वापस आया, बोला- 'गुरुदेव ! मैंने बहुत अविनय और आशातना की। आपके आदेश को नहीं माना। अब आप जब चाहें, भाई को बुला लें। मैं भाई से खमतखामणा कर लूंगा।'
खमतखामणा का बहुत महत्त्व है। जैन लोग संवत्सरी पर्व मनाते हैं। यह मैत्री का महान् पर्व है, मन की गांठों को खोलने का पर्व है। मन की गांठ को खोलना जटिल होता है। वह खुल जाती है तो सारा वातावरण बदल जाता है, प्रेम उमड़ पड़ता है। जम्बूकुमार ने मन की गांठें खोल दीं। मृगांक और रत्नचूल - दोनों में प्रेम संबंध स्थापित करवा दिया।
जम्बूकुमार ने कहा- 'राजा मृगांक ! राजा रत्नचूल ! विद्याधर व्योमगति ! अब शीघ्र प्रस्थान करना है।'
रत्नचूल, मृगांक और व्योमगति, सबने कहा- बिल्कुल ठीक है, हम भी साथ चलेंगे पर अभी पता नहीं है कि सम्राट् श्रेणिक कहां हैं? पहले उनका पता तो चले।
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