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'कौन शत्रु?' 'रत्नचूल।' 'क्या रत्नचूल गिर गया है?' 'हां महाराज!' 'किसने गिराया?' 'स्वामी! दूसरा कौन हो सकता है उसे गिराने वाला?' 'कौन है वह?' 'जम्बूकुमार। मृगांक शत्रु के मान-मर्दन से बहुत खुश हुआ। युद्ध में और क्या होता है? शत्रु को पीड़ा पहुंचती है, शत्रु गिरता है तो दूसरे को खुशी होती है।
जैसे ही रत्नचूल गिरा, जम्बूकुमार ने सोचा यह तो फिर खड़ा होकर लड़ाई शुरू कर देगा। अच्छा नहीं होगा। ___ जम्बूकुमार तत्काल आगे बढ़ा, उसने अपने भुज-पंजर में रत्नचूल को दबोच लिया। जैसे पिंजड़ा बन गया। वज्रकाय शरीर बड़ा शक्तिशाली होता है। आज तो कोई उदाहरण सामने नहीं है। हमने बचपन में ऐसे
गाथा लोगों को देखा है, जिनका इतना मजबूत शरीर था कि हाथ पकड़ लेते तो ऐसा अनुभव करते जैसे सण्डासी ।
परम विजय की में ही दे दिया। इधर-उधर हिलने का प्रसंग ही नहीं रहता। हठयोग में शरीर को वज्र बनाने की विधियां हैं। प्रसिद्ध योगी गोरखनाथ हुए हैं, जिनका मत भी चलता है-गोरक्ष पंथ। गोरखनाथ सिद्धपुरुष थे। उन्होंने बड़ी साधना की थी। गोरक्ष पद्धति उनका एक ग्रंथ है। गोरखनाथ ने प्राणायाम, आसन तथा कुछ प्रयोग के द्वारा शरीर को ऐसा वज्र बना लिया कि उस पर तलवार का प्रहार करो, तलवार टूट जायेगी, शरीर का कुछ नहीं बिगड़ेगा। गोली चलाओ, गोली टकराकर वापस आ जायेगी, पर उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा। उसका नाम है-वज्रकाय सिद्धि'। शरीर को बिल्कुल वज्र बना लिया जाता है।
जम्बूकुमार को वज्रकाय सिद्धि की जरूरत नहीं थी। वह स्वयं वज्रऋषभनाराचसंहनन से युक्त था, वज्रकाय बना हुआ था। उसने रत्नचूल को पकड़ा तो रत्नचूल मूर्छा में चला गया। ऐसा अनुभव हुआ जैसे कोई पिजड़े में पंछी को डाल दिया है। जैसे ही रत्नचूल बंदी बना, सेना में खलबली मच गई।
गाढं स निगृहीतस्तु, दौर्मनस्यं गतो भृशम्।
बद्धेस्मिन् सैनिकास्तस्य, नेशुः सर्वे दिशोदिशम्।। सेना चारों तरफ भाग गई, थोड़ी देर में युद्धस्थल खाली हो गया। जो युद्ध भयंकर लग रहा था, जिस विद्याधर के बल पर युद्ध की विभीषिका बनी हुई थी, उसको पकड़ा और युद्ध समाप्त हो गया। सेनापति जब भागता है, सब भाग जाते हैं। दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र में बतलाया है-मोह नष्ट होता है तो घाति कर्म नष्ट हो जाते हैं। सेनापति भागता है तो सारी सेना भाग जाती है। ५८