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श्रुतज्ञान के दो प्रकार हैं-अक्षर श्रुत और अनक्षर श्रुत। आचार्य मलयगिरि ने नंदी वृत्ति में इनका बहुत सुन्दर वर्णन किया है। उन्होंने लिखा-एकेन्द्रिय जीवों में भी श्रुतज्ञान होता है। पुराने आचार्यों ने इसे युक्ति से समझाया। आज तो प्रत्यक्ष समझाया जा रहा है। टमाटर के सैकड़ों पौधे। एक टमाटर के पौधे पर कीड़ा लगा। वह पत्ता खा गया। पौधा नष्ट होने लगा। इस पौधे ने टमाटर के शेष सब पौधों को यह सूचना भेज दी कि कीड़ा लग गया है। सावधान हो जाओ। सब टमाटर के पौधों ने अपनी सुरक्षा की तैयार कर ली। ऐसी सुरक्षा की कि कीड़ा आगे नहीं बढ़ सका। सब बच गए। एक सूचना ने सबको सुरक्षा का अवसर दे दिया।
यह बात एक कहानी-सी लगती है किन्तु आज तो यह प्रत्यक्ष प्रयोग से प्रमाणित है कि वनस्पतिकाय के जीव प्रकंपनों से बातचीत करते हैं, सूचना भेज देते हैं। आदमी बोलता है अक्षरात्मक भाषा। वे अनक्षर भाषा बोलते हैं।
अनक्षर-श्रुत से बात हो जाती है। देवता भी बात करते हैं तो क्या अ, आ, ई वर्णमाला का प्रयोग करते हैं? इन शब्दों में बात करते हैं? क्या वह इनकी भाषा है? वे प्रकंपनों से बात करते हैं और समझ जाते हैं।
हम लोग भी प्रकंपन को ज्यादा काम लेते हैं पर जानते नहीं हैं। मैं बोल रहा हूं, आप मेरी बात सुन रहे हैं। प्रज्ञापना सूत्र कहता है-'आप मेरे शब्दों को बिल्कुल नहीं सुन रहे।' क्या यह बात जंचती है? किन्तु हम प्रकंपन के सिद्धांत पर जाएं तो ज्ञात होगा-मैं जो बोल रहा हूं, वे भाषा वर्गणा के पुद्गल लोक में फैल गए। वे भाषा वर्गणा के पुद्गल जिन पुद्गलों को आघात देते हैं, वासित करते हैं, उन पुद्गलों को आप सुन रहे हैं। यदि आप सम-श्रेणी में बैठे हैं तो मिश्र शब्द सुनते हैं। मूल शब्द के साथ दूसरे शब्दों का मिश्रण सुन रहे हैं। अगर कोई तिरछा बैठा है, विश्रेणी में है तो वह मिश्रण भी नहीं सुन रहा है, कोरे प्रकंपनों को सुन रहा है। प्रकंपनों का सिद्धांत बड़ा रहस्यपूर्ण है।
आजकल कुछ प्रयोग यंत्र के स्तर पर होने लगे हैं। जैसे लेजर किरण का प्रयोग है। आंखों का ऑपरेशन करना है, शस्त्र की जरूरत नहीं, किरण से ही सारा काम हो जाएगा। ऐसे प्राणिक ऑपरेशन भी करते हैं। पेट का ऑपरेशन किया, गांठ निकाल दी। न चीरा दिया, न घाव हुआ। कुछ भी नहीं।
हमारा जगत् चमत्कार का जगत् है। परमाणुओं के इतने बड़े चमत्कार हैं, रहस्य विद्या के इतने चमत्कार हैं कि हम उन्हें नहीं जानते। विद्याधर होते हैं, वे और ज्यादा शक्तिशाली होते हैं, उन्हें अनेक विद्याएं सिद्ध होती हैं।
रत्नचूल और मृगांक में प्रारंभ हुए विद्या युद्ध में अंधकार और प्रकाश की स्थिति आ गई। अब कौन-सा नया प्रयोग होगा और क्या होगा उसका परिणाम?
गाथा परम विजय की