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________________ उस समय जम्बूकुमार ने बाण से ऐसा प्रहार किया कि रत्नचूल का विमान टूट गया और वह नीचे आकर गिरा। रत्नचूल की सेना में हाहाकार मच गया। स्वामी नीचे गिर गए! इस ध्वनि ने सबको एक क्षण के लिए स्तंभित-सा कर दिया। मृगांक हाथी पर चढ़ा हुआ था। महावत से उसने पूछा-'विमान से कौन गिरा है?' महावत बोला-'जो आपको चाहिए था, वही गिरा है। आपका सज्जन रत्नचूल, जिसने युद्ध छेड़ा है. जिसने इतना विध्वंस किया है, वह आकाश से नीचे गिरा है।' मृगांक को विस्मय हुआ–'कैसे गिरा वह?' 'महाराज! उस दिव्य कुमार की कोई विशेषता है कि वह जिधर आंख उठा लेता है, ऊपर का नीचे गिर जाता है, पाताल में चला जाता है। वह क्या है, हम समझ नहीं पा रहे हैं।' सेना ने रत्नचूल को तत्काल संभाल लिया। परिचर्या की, उपचार किया। रत्नचूल स्वस्थ हो गया। रत्नचूल बोला-क्या हो गया था?' | 'जो होना था हो गया।' 'नहीं, ऐसे हार नहीं माननी है।' 'हाथी लाओ।' सैनिक हाथी ले आए, वह हाथी पर बैठा, पूछा-'सामने हाथी पर कौन है?' 'राजा मृगांक।' 'राजा मृगांक मुझ पर हंस रहा है। अब पता चलेगा।' रत्नचूल के स्वर में आक्रोश था। यह बात स्वीकार करनी होगी-आवेश में आदमी जो काम कर सकता है, शांत स्थिति में वह काम नहीं कर सकता। शांत स्थिति का काम अलग है और आवेश का काम अलग। आवेश में बल इतना बढ़ता है कि कल्पना नहीं की जा सकती। आत्मबल की बात छोड़ दें, मनोबल की बात छोड़ दें। आवेग का बल भी बडा भयंकर होता है। नींद का भी आवेश होता है। एक नींद बतायी गयी है स्त्यानर्द्धि-उसका आवेश अर्धचक्री का बल जितना होता है। उस आवेश में, नींद में व्यक्ति उठ जाता है। उठकर जहां जाना है, वहां चला जाता है। दौड़ता-दौड़ता पचास कि.मी. भी चला जाता है। कोई दिक्कत नहीं होती। यदि चोरी करने का भाव मन में रहा तो चोरी कर, दरवाजों, तालों और तिजोरियों को तोड़कर चोरी कर लेता है। किसी की हत्या करनी है तो हत्या कर देता है। सिंह और बाघ को मार देता है। बड़े से बड़ा काम कर लेता है और वापस आकर सो जाता है। सुबह उठता है तो सब कुछ भूल जाता है। स्त्यानर्द्धि निद्रा के आवेश में ऐसा होना संभव है। ___ आवेश में बल बढ़ता है। युद्ध में आवेश न हो तो व्यक्ति युद्ध लड़ नहीं सकता। कोई भी शांतरस का अनुभव करने वाला लड़ भी नहीं सकता और उसमें वैसा बल भी नहीं आता। रत्नचूल ने सोचा अब शस्त्रों की लड़ाई से काम नहीं चलेगा। अब तो विद्या का ही प्रयोग करना है, विद्या का अस्त्र चलाना है। महाभारत में ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया गया। ब्रह्मास्त्र के सामने सारे शस्त्र निकम्मे हो जाते हैं। विद्या के अस्त्र के सामने शस्त्र निकम्मा हो जाता है। रत्नचूल ने विद्या के अस्त्र के प्रयोग का निश्चय कर लिया। गाथा परम विजय की
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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