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गाथा परम विजय की
संन्यासी ने कहा-'मुझे बिल्कुल नहीं चाहिए। कोई आवश्यकता नहीं है।' ___ अधिकारी निराश लौट गए। राजा ने सोचा-बड़ा विचित्र भिखारी है। जिसके पास कुछ भी खाने को नहीं है, दाने बीन-बीनकर खाता है और धन देते हैं तो लेता नहीं है। भिखारी भी और ठेगारी भी। खाता है चुग-चुगकर और अपना एक अहंकार भी रखता है, कुछ लेता नहीं है।
राजा स्वयं आया, नमस्कार कर बैठ गया, बोला-'महाराज! आपके पास खाने को कुछ नहीं है। आप ऐसे दाने बीन-बीन कर खाते हैं। थोड़ा-सा हमारा धन ले लो। आपका काम ठीक चल जायेगा।'
बड़े पहुंचे हुए संत थे, बोले-'राजन्! तुम मुझे देना चाहते हो?' 'हां, देना चाहता हूं।' 'किन्तु मैं भिखारी नहीं हूं और मैं लेना नहीं चाहता।' 'आप क्यों नहीं लेना चाहते?' 'क्योंकि मैं बहुत समृद्ध और समर्थ हूं।' 'आपकी समृद्धि कहां है?' 'राजन्! मेरे पास स्वर्ण सिद्धि की विद्या है। मैं चाहूं तो सारे लोहे को सोना बना दूं।'
यह सुनते ही राजा की आंखें खुल गईं। वह विनय से झुका, नमस्कार किया और बोला-'महाराज! यह स्वर्ण सिद्धि की विद्या तो आप मुझे भी सिखा दो।'
राजा का अनुरोध आग्रह में बदल गया 'आप मुझे यह सोना बनाने की कला सिखा दें।'
संन्यासी सुनता रहा, कुछ बोला नहीं। काफी देर राजा ने मिन्नतें की। संन्यासी बोला-'राजन्! अब बताओ भिखारी तुम हो या मैं? कौन है भिखारी?'
राजा मौन हो गया।
जिसके पास सम्यक् दर्शन है, वह सबसे ज्यादा धनी होता है। वह इतना सुख और शांति का जीवन जीता है जितना दुनिया में कोई नहीं जी सकता। जिसका दृष्टिकोण सही बन गया, वह हर बात को ठीक सोचता है, ठीक देखता है, ठीक कार्य करता है। वह विधायक भाव में जीता है। न कोई ईर्ष्या, न कोई द्वेष, न कोई स्पर्धा, न कोई हीनता की भावना, न कोई अहंकार की भावना केवल आत्मा के साक्षात् की भावना। सम्यक दर्शन का मतलब है आत्मा का ज्ञान होना. आत्मा को देखने की मन में ललक पैदा हो जाना। यह सम्यक् दर्शन सबसे बड़ा रत्न है।
दूसरा रत्न है सम्यग् ज्ञान। जब तक दर्शन सही नहीं होता, ज्ञान भी सही नहीं होता। ज्ञान तब सही होता है जब दर्शन सही होता है। ___एक आदमी के प्रति दृष्टिकोण बन गया यह आदमी अच्छा नहीं है। अब वह व्यक्ति कोई भी काम करेगा तो संशय पैदा होगा। अच्छी बात कहेगा तो भी गलत ली जायेगी। सास के मन में बहू के प्रति और बहू के मन में सास के प्रति दृष्टिकोण गलत बन गया तो फिर कोई भी बात कहेगी तो उलटी ली जायेगी, बात सुलटी नहीं होगी। पुत्र का पिता के प्रति दृष्टिकोण गलत बन गया तो फिर पिता कोई हित की बात
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