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कुमार का आग्रह है मुझे यहां छोड़ दो। मेरा मन नहीं मानता कि मैं इसे अकेला छोड़ दूं। दोनों ओर समस्या है। वह संशय की स्थिति में, दोलायमान अवस्था में आ गया। वह न तो जा पा रहा है, न कुछ बोल पा रहा है।
जम्बूकुमार ने पुनः कहा- 'व्योमगति! तुम उलझ गए। तुम उलझो मत । विचार मत करो। चिन्ता की कोई बात नहीं है। तुम देखो तो सही क्या होता है!'
जम्बूकुमार ने बहुत आग्रह किया तब विद्याधर ने कहा- 'जैसा ठीक लगे।'
व्योमगति विमान में उड़कर राजा मृगांक के पास चला गया। अकेला जम्बूकुमार वहां खड़ा है। इधर जंगल, उधर भयंकर विशाल सेना । पर एक रोम में भी कहीं विचलन नहीं। वह आगे बढ़ा। सेना की छावनी के पास पहुंचा। सैनिक चारों ओर पहरा दे रहे हैं। किसी से पूछा नहीं, बात नहीं की। सीधा सेना के बीच घुस गया और चलने लगा। एक अजनबी आदमी सेना में आ जाए, तो बड़ी समस्या हो जाती है। कुछ वर्ष पहले एक विमान शस्त्र गिराने के लिए देश में आ गया, पूरे देश में कोहराम मच गया, कोलाहल हो गया। कहा गया—सरकार जागरूक नहीं है। सेना में कोई आदमी ऐसे घुस जाए और सेना कुछ करे नहीं, यह कैसे संभव है?
जम्बूकुमार छिप कर नहीं घुसा, मुख्य मार्ग से सीना तानकर जा रहा है। सैनिकों ने देखा - यह कोई नया आदमी है। उसका संकल्प बल, उसकी सम्मोहिनी मुद्रा, आकर्षक व्यक्तित्व ऐसा था कि उसे देखते ही सैनिक विमुग्ध बन गए। एक सैनिक दूसरे सैनिक से कहने लगा
अहो! देवाधिनाथोऽयं, आयातो लीलया स्वतः । दानवोप्यहिनाथो वा, नागदेवो समागतः ।।
अरे! देखो कौन आया है? आदमी तो इतना सुन्दर, मोहक हो नहीं सकता। लगता है कोई देवराज आया है अथवा कोई दानवेन्द्र आया है? यह अवश्य कोई देव है। आदमी ऐसा हो नहीं सकता। कौन आया है? क्या कामदेव स्वयं नहीं आ गया है? उसे रोकना, मनाही करना, पूछना - किसी की हिम्मत नहीं हुई । न किसी ने पूछा–कैसे जा रहे हो ? न रोका। जहां प्रवेश आरक्षित होता है, वहां अनजाने आदमी को घुसने नहीं दिया जाता, उसे रोका जाता है पर रोकने की बात सब भूल गए। सब जम्बूकुमार के व्यक्तित्व और आभामंडल की चर्चा में गए। कौन है - यह पूछने की किसी ने चेष्टा ही नहीं की। द्रष्टुं वा सैन्यमस्माकमाजगाम शचीपतिः । अथ कश्चिन् महाभागो, लक्ष्मीवान् किं वणिक्पतिः ।।
एक सैनिक बोला-'हो सकता है-इंद्र स्वयं आ गए हों हमारी सेना की व्यूहरचना देखने के लिए। यह तो निश्चित है कि आज हमारी सेना ने जो व्यूहरचना की है वह बहुत जबर्दस्त है । इन्द्र के मन में भी विकल्प उठा हो कि कभी लड़ना पड़े तो व्यूहरचना कैसी की जाए ?'
यह न मानें–केवल आदमी लड़ता है, देवता भी लड़ते हैं। सौधर्मेन्द्र और ईशानेन्द्र में भी कभी-कभी लड़ाई हो जाती है। पहले वैमानिक देव - सौधर्म देवलोक का इन्द्र शक्र और दूसरे देवलोक के ईशानेन्द्र में भी कभी-कभी संघर्ष हो जाता है। उनमें लड़ाई इतनी भयंकर होती है कि समाप्त नहीं होती। कोई हारता
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गाथा
परम विजय की
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