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________________ 0. L 7 गाथा परम विजय की यह बात हेमराजजी को बहुत अप्रिय लगी। वे बोले-'स्वामीजी! आप ऐसी बात करते हैं। यदि आपको शंका हो तो मुझे नौ वर्ष बाद अब्रह्मचर्य सेवन का त्याग करा दें।' 'तुम्हें त्याग है' इस प्रकार त्याग करवाकर आचार्य भिक्षु बोले-'तुमने ये नौ वर्ष विवाह करने के लिए ही रखे हैं। इसमें से एक वर्ष तो ब्याह करने में लग जाएगा।' 'हां, स्वामीनाथ! इतना तो लग सकता है।' 'शेष बचे आठ वर्ष। उसमें भी स्त्री एक वर्ष तक अपने पीहर में रहेगी।' 'हां, स्वामीनाथ!' 'शेष बचे सात वर्ष। तुम्हें दिन में अब्रह्मचर्य सेवन का त्याग है।' 'हां, स्वामीनाथ!' 'शेष बचे साढ़े तीन वर्ष। तुम्हें पांच तिथियों में अब्रह्मचर्य का त्याग पहले से है।' 'हां स्वामीनाथ!' 'शेष बचे लगभग दो वर्ष चार मास'-आचार्य भिक्षु ने इस प्रकार काल को समेटते-समेटते प्रहरों और घड़ियों का हिसाब कर बताया-हेमड़ा! नौ वर्ष में अब्रह्मचर्य सेवन का काल बचा केवल छह मास।' 'हां, स्वामीनाथ! आप ठीक फरमा रहे हैं।' 'हेमड़ा! विवाह के बाद संतान को जन्म देकर यदि पत्नी मर जाती है तब सारी आपदा स्वयं के गले पर आ जाती है। व्यक्ति दुःखी हो जाता है। फिर साधुपन स्वीकार करना कठिन हो जाता है।' 'हां, स्वामीनाथ!' 'हेमड़ा! इसलिए तुम हाथ जोड़ आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार करो।' मुनि खेतसीजी आचार्य भिक्षु के पास खड़े थे, उन्होंने भी प्रेरणा दी-हाथ जोड़ो और त्याग कर लो।' मुनि हेमराजजी ने हाथ जोड़े तब आचार्य भिक्षु ने पूछा-'क्या तुम्हें ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार करा दूं?' हेमराजजी बोले-'स्वामीनाथ! स्वीकार करा दें।' आचार्य भिक्षु ने पंच पदों की साक्षी से अब्रह्मचर्य व्रत का त्याग करवा दिया। मुनि हेमरामजी की दीक्षा का पथ प्रशस्त हो गया। ___मुनि हेमराजजी दीक्षा से पूर्व शादी करना चाहते थे और जम्बूकुमार शादी करना ही नहीं चाहता था। जम्बूकुमार की पत्नियां उसे अपने मोहपाश में बांधना चाहती थीं पर जम्बूकुमार ने उन्हें ब्रह्मचर्य का रहस्य समझा दिया। बहुत लोग मृत्यु के रहस्य को नहीं जानते। जब नचिकेता यम के पास गया तब यम ने कहा-'तुम कुछ मांगो।' नचिकेता छोटा था अवस्था में। उसने कहा-'मुझे मृत्यु का रहस्य समझाओ।' यम ने कहा-'यह बड़ा गहन विषय है। तुम इसको छोड़ दो, और जो चाहो सो मांग लो।' उसने हठ पकड़ लिया-मैं और कुछ नहीं मांगूगा, मुझे तो मृत्यु का रहस्य समझाना होगा।' ३३१
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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