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गाथा परम विजय की
'मालिक! यह कफन है। क्योंकि शराब पीने वाला जल्दी मरता है। अब बार-बार क्यों जाएं बाजार में। मैं साथ में कफन भी ले आया।'
मालिक ने दरवाजे की ओर देखा-बाहर चार-पांच आदमी भी खड़े हैं। फिर पूछा-'ये कौन हैं?' 'मालिक! ये अर्थी उठाने वाले हैं।'
'मालिक! मैंने एक साथ अनेक काम कर दिए-मैं शराब की बोतल ले आया, वैद्य को ले आया, दवाइयां भी ले आया, कफन भी ले आया और अर्थी उठाने वालों को भी ले आया। सब तैयार हैं। अब क्या आदेश है आपका?' ____ यह सुनते ही मालिक की आंखें खुल गईं। मालिक ने कहा-'शराब इतनी खराब होती है। मुझे अब इसे नहीं पीना है।' ___एक नौकर भी ऋण चुका देता है। नौकर ने शराब छुड़ा दी। मालिक का ऋण चढ़ा नहीं, उससे पहले ही उतार दिया।
स्थानांग सूत्र में कहा गया-ऋण उतारने वाले तीन व्यक्ति हैं• नौकर मालिक का ऋण उतारता है, मुनीम सेठ का ऋण उतारता है। • पुत्र पिता का ऋण उतारता है। • शिष्य गुरु के ऋण से उऋण होता है।
एक पुत्र माता-पिता को धर्म का सहयोग देता है, धर्म के प्रति प्रेरित करता है-धम्मस्स पडिचोइयाए भवइ-वह माता-पिता के ऋण से उऋण होता है, उनका कर्जा चुका देता है।
शिष्य गुरु को सहयोग करता है, उनके ऋण से उऋण होता है।
आचार्य भिक्षु ने अंतिम समय में कहा था-मैंने भारमलजी, खेतसीजी आदि संतों के सहयोग से सुखे-सुखे संयम की साधना की।' उनका ऋण उतर गया।
जम्बूकुमार ने कहा-प्रभव! मैं इस तथ्य को जानता हूं कि ऋण कैसे चुकाया जाए, ऋण कैसे उतारा जाए। मैं पिता-माता का ऋण उतारे बिना दीक्षा नहीं लूंगा। मैं उन्हें धर्म की ओर प्रेरित करूंगा। अभी तो तुम देखो क्या-क्या होता है। अभी तो मैं बैठा हूं, मेरी ये आठ नवपरिणीता पत्नियां बैठी हैं, जो अब बहिनें ही हैं। तुम सुबह होने दो, क्या-क्या रंग खिलता है।' _ 'प्रभव! तुम्हारा यह तर्क व्यर्थ है कि तुम माता-पिता का ऋण चुकाए बिना उनको छोड़ रहे हो, तुम्हारी अच्छी गति कैसे होगी? यदि माता-पिता के पास रहकर भी उनको धर्म की ओर प्रेरित नहीं करता तो न माता-पिता की गति अच्छी होती, न मेरी गति अच्छी होती। मैंने तो वह मार्ग चुना है जिससे मेरी गति भी अच्छी हो और माता-पिता की गति भी अच्छी हो।' ___जम्बूकुमार ने बहुत मार्मिक बात कही-'प्रभव! मैं माता-पिता की सुख-सुविधा को नहीं देखता, मैं उनके कल्याण को देखता हूं।'
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