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________________ (3) (Ah । ONARNITING MORE Thunavardhan गाथा परम विजय की 'क्या तुम इस तथ्य को जानती हो-कोयल काली होती है और कौआ भी काला होता है।' ‘हां स्वामी!' 'क्या कौआ और कोयल के रंग-रूप को देखकर यह भेद कर सकती हो कि यही कोयल है या कौआ है?' 'यह संभव नहीं है।' 'प्रिये! सच जानने के लिए परीक्षा तो करनी होती है।' काकः कृष्णः पिकः कृष्णः को भेदः पिककाकयोः। यदा ब्रूते तदा ज्ञातं, काकः काकः पिकः पिकः।। कवि ने कितना सुंदर लिखा है-कौआ भी काला और कोयल भी काली। उनके भेद का पता कब चलता है? जब वे बोलते हैं 4 तब ज्ञात हो जाता है कि यह कोयल है और यह कौआ है।' 'प्रिये! सच की परीक्षा करनी होती है। मैं कुएं का मेढक नहीं हूं कि कुएं में जो कुछ है, उसी को सच मान लूं। मैं विश्व को व्यापक दृष्टि से देख रहा हूं। कूपमंडूक की तरह नहीं देख रहा हूं।' ___प्रिये! जो कुएं का मेढक होता है, वह समझता है जो सचाई है वह कुएं में है। जो बड़प्पन है वह कुएं में है। इससे बड़ा कोई हो नहीं सकता।' प्रिये! एक बार कुएं की मुंडेर पर एक राजहंस आकर बैठ गया। कुएं में एक मेढक था। उसने देखा-कुएं की मुंडेर पर कोई पक्षी आकर बैठा है। उसे वह पक्षी अच्छा लगा।' रे पक्षिन्नागतस्त्वं कुत इह सरसस्तद् कियद् भो विशालं, किं मद्धाम्नोऽपि बाढं? न हि न हि सुमहत् पाप मा ब्रूहि मिथ्या। इत्थं कूपोदरस्थः सपदि तटगतो दर्दुरो राजहंसं, नीचः स्वल्पेन गर्वी भवति हि विषयाः नापरे येन दृष्टाः।। मेढक ने पूछा-रे पक्षी! तुम्हारा नाम क्या है?' पक्षी बोला-'राजहंस।' 'तुम कहां से आये हो?' 'सरसः-मानसरोवर से आया हूं।' 'तत् कियद् भो विशाल-बताओ, वह कितना विशाल है?' 'बहुत विशाल है।' मेढक ने एक छलांग लगाई। एक लकीर खींची और पूछा-'क्या इतना बड़ा है?'
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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