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'राजन्! मैंने बचपन से यौवन में प्रवेश किया। पिताश्री चिन्तित रहने लगे। उन्होंने यथाशीघ्र पाणिग्रहण कर देने का निश्चय कर लिया । वर को खोजा । वर भी मिल गया। उन्होंने वाग्दान की रस्म भी पूरी कर दी। राजन्! एक दिन अचानक वह वर हमारे घर पहुंच गया। मैंने उसे देखा, उसके प्रति सहज प्रेम का भाव जगा। उसकी आंखों में भी स्नेह का दर्शन हुआ। मैंने पहचान लिया कि यह मेरा भावी पति ही होना चाहिए। मैंने उसकी आवभगत की, स्वागत किया। अच्छा भोजन कराया, सब कुछ किया पर उसका तो ध्यान केवल मेरे रूप पर अटक गया। वह मेरे रूप में खो गया। वह मेरे रूप पर इतना मुग्ध हो गया कि तन्मय बन गया।'
‘राजन्! अब तक हम दोनों में भेद प्रणिधान था। मैं और वह दो थे। मैं यह जान रही थी, अनुभव कर रही थी कि मुझे कोई देख रहा है, मेरे रूप का कोई दीवाना बना हुआ है। पर राजन्! वह देखते-देखते इतना तन्मय बना कि मुझ में विलीन हो गया। मुझे यह पता ही नहीं चला कि कब मेरे भीतर विलीन हुआ। मैंने उसे खोजा तो कोई दिखाई ही नहीं दिया, कुछ पता ही नहीं चला।'
'राजन्! मैंने पिताजी से कहा—पिताजी! मेरा पति आया था, कहां चला गया।' पिताश्री ने कहा- 'बेटी ! आया तो था, यहीं-कहीं होगा। पूरे घर में खोजा पर कहीं दिखाई नहीं दिया । '
'राजन्! मैंने आंख मूंदकर सोचा, चिन्तन की गहराई में गई तो मेरे दिमाग में भावी पति के विलीन होने का रहस्य स्पष्ट हो गया।
'क्या रहस्य स्पष्ट हुआ ?' – विस्मय विमुग्ध राजा ने पूछा।
पूरी परिषद् भी इस घटना प्रसंग को सुनकर स्तब्ध रह गई।
'राजन्! मैंने दो प्रकार के प्रणिधानों के बारे में जाना है- एक होता है भेद - प्रणिधान और एक होता है अभेद-प्रणिधान। जहां भेद-प्रणिधान होता है वहां ध्याता और ध्येय दोनों का पृथक् अस्तित्व बना रहता है। जहां अभेद-प्रणिधान होता है, वहां ध्याता और ध्येय के बीच की दूरी समाप्त हो जाती है, ध्यान करने वाला अपने ध्येय के साथ एकाकार हो जाता है। राजन्! मेरा भावी पति मेरे रूप में इतना मुग्ध हो गया, इतना तन्मय हो गया कि वह मेरे से भिन्न नहीं रहा, वह मुझमें ही विलीन हो गया । '
राजा क्षोभ के साथ बोला-'तुम बिल्कुल झूठ बोल रही हो। सच्ची कहानी कहो।'
ब्राह्मण कन्या ने विनम्र स्वर में कहा - 'महाराज ! आप रोज कहानी सुनते हैं, उनमें कौन-सी सच्ची है, कौन-सी झूठी ? यह निर्णय पहले करें। आपने तत्काल यह कैसे कह दिया कि तुम्हारी कहानी झूठी है।' 'क्या कोई आदमी गायब होता है ? क्या कोई आदमी कहीं विलीन होता है ? ऐसा कहीं नहीं होता । यह केवल गप है।'
‘महाराज! पहले आप यह निर्णय दें कि इतने दिन आपने कहानियां सुनी हैं। उनमें कौन-सी सच्ची है और कौन-सी झूठी ?'
राजा इस प्रतिप्रश्न से असमंजस में पड़ गया। उसने सोचा- कहानी में तो सब बातें सच्ची नहीं कही जातीं। बहुत बातें काल्पनिक आती हैं, बहुत झूठी बातें भी आती हैं। ऐसी गप भी कही जाती है- 'नौ हाथ की काकड़ी, तेरह हाथ का बीज ।
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गाथा
परम विजय की
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