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________________ २६ हर व्यक्ति अपने पुरुषार्थ में विश्वास करता है और यह सोचता है कि मैं यह काम कर लूंगा। यह विश्वास बहुत आवश्यक है। आत्मविश्वास के बिना कोई काम होता नहीं है । पद्मश्री में यह आत्मविश्वास जागृत हुआ कि मैं जम्बूकुमार को समझाकर ही रहूंगी। पद्मश्री अपने आसन से उठी, जम्बूकुमार के पास आई, बोली- 'प्रियतम ! मैं ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहती। मैं केवल एक सूक्त, एक नीति वचन की ओर आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहती हूं।' 'पद्मश्री! क्या है वह नीति वचन ?' “प्रियतम! वह नीति वचन यह है- अति सर्वत्र वर्जयेत्-चाहे कितना ही अच्छा काम हो, कितनी ही अच्छी बात हो, अति नहीं करनी चाहिए। अति हानिकारक होती है। बस इतनी छोटी सी बात आप समझ लें कि अति नहीं करनी है तो मुझे और कुछ नहीं कहना है । किन्तु लगता है-आप अति पर जा रहे हैं, अति कर रहे हैं।' जम्बूकुमार ने कहा- 'पद्मश्री ! मैं तो अति या इति कुछ नहीं जानता। मैं अति कहां कर रहा हूं? जो मेरा स्वभाव है, वही तो मैं कर रहा हूं।' 'प्रियतम! आप बिल्कुल अति कर रहे हैं।' 'अति कहां है? जो स्वाभाविक है वही तो कर रहा हूं।' ‘प्रियतम! आप अभी तक जानते नहीं हो, समझते नहीं हो। अगर अब आप अति करेंगे तो उसी प्रकार पछताएंगे, जैसे एक वानर पछताया था। जो दशा उस वानर की हुई थी, वही दशा आपकी होगी।' जम्बूकुमार बोला- 'पद्मश्री ! वह कौन वानर था ? उसने क्या अति की थी? मैं भी सुनना चाहूंगा।' पद्मश्री ने वानर की कथा सुनाते हुए कहा- 'प्रियतम ! जंगल में एक बावड़ी थी। उसके परिसर में एक बंदर का जोड़ा रहता था। वानर-वानरी दोनों एक दिन घूमते-घूमते उस बावड़ी के पास आ गए। बावड़ी के पास एक आवाज सुनाई दी। वहां प्रतिदिन एक ध्वनि होती है, आकाशवाणी होती है- कोई भी बंदर बावड़ी में नहायेगा, स्नान करेगा वह आदमी बन जायेगा। यह आकाशवाणी दोनों ने सुनी, सोचा - बहुत अच्छा १८४ m गाथा परम विजय की w (1
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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