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एक व्यक्ति धर्म को सुनता है और एक व्यक्ति धर्म को जीता है। इन दोनों में बहुत अंतर है। एक व्यक्ति धर्म को सुनता है, बात कानों में पहुंचती है, मस्तिष्क में पहुंचती है और विस्मृति के गर्त में चली जाती है। एक व्यक्ति धर्म को जीता है, धर्म से लाभ उठाता है, धर्म के सिद्धांतों का प्रयोग करता है और अपनी शक्ति, अपना आनंद बढ़ा लेता है। जम्बूकुमार ने धर्म को सुना नहीं, जीना शुरू कर दिया इसीलिए उसने प्रथम विजय प्राप्त की। परम । गाथा
परम विजय की विजय आगे है। किन्तु प्रथम चरण में जो विजय मिली, उससे बहुत यश मिला।
सम्राट् श्रेणिक को पता चला उन्मत्त पट्टहस्ती वश में हो गया है। उसे एक अज्ञात युवक ने वश में किया है।
सम्राट् श्रेणिक ने कहा-हम वहां चलें, उस युवक को देखें। कर्मकरों ने कहा-वह युवक अभी हाथी पर आरूढ़ है। आपको स्वतः पता चल जाएगा।
सम्राट् श्रेणिक अपने परिवार के साथ आए, देखा-एक युवक बहुत सुंदर, छोटी अवस्था। हाथी पर आरूढ़। सर्वथा अभय। आश्चर्य हुआ। तत्काल सम्राट् बोल पड़ा आश्चर्यकारी है कुमार का बल। इतने दुर्दान्त हाथी को इसने खेल-खेल में वश में कर लिया, ऊपर चढ़ बैठा, आराम से हस्ति का आनंद ले रहा है।
बहुत विचित्र है यह युवक। कैसे हुआ यह? सम्राट् श्रेणिक कुमार के वीर्य को देखकर विस्मित हो गया। आश्चर्यम् आश्चर्यम्-इस शब्द को अनेक बार दोहराया।
दृष्ट्वा वीर्यं कुमारस्य, भूपो विस्मयतां गतः।
स्वासनस्यार्धभागे तं, नीतिवानथ नीतिवित्।। सम्राट् श्रेणिक वहां पहुंचा, परिषद् जुड़ गई। क्रीड़ा-यात्रा में आए हजारों लोग इकट्ठे हो गए। सम्राट श्रेणिक सिंहासन पर बैठ गया। जम्बूकुमार को आमंत्रित किया। कुमार हाथी से नीचे उतर राजा के पास