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________________ अब तो तुम्हें यह सोचना चाहिए-कैसे घर को संभालना है? कैसे दुकान को संभालना है? कैसे कामकाज करना है? इतना बड़ा व्यापार, व्यवसाय है, इसका कैसे संचालन करना है? जो संबंध स्थापित . किये हैं उन संबंधों को कैसे निभाना है?' 'जात! सामाजिक जीवन संबंधों का जीवन होता है, संयोग का जीवन होता है। मुनि जीवन और गृहस्थ जीवन में अन्तर क्या है? क्या तुम्हें यह ज्ञात नहीं है? महावीर का स्पष्ट वचन है-सामाजिक जीवन संबंधों का जीवन है।' सामाजिक जीवन के तीन लक्षण हैं-संबंध अथवा संयोग, घर और रसोई। यह है सामाजिक जीवन। साधु का जीवन इससे सर्वथा उलटा होता है। उसके कोई घर नहीं होता। वह अनगार होता है। घर-घर जाता है, भिक्षा से जीवन यात्रा का निर्वाह करता है। कोई संबंध नहीं, रिश्ते नाते नहीं। संजोगा विप्पमुक्कस्स-वह संयोग से मुक्त होता है। संयमी साधक के ये तीन लक्षण हैं।' 'जम्बूकुमार! तुम संयोग स्थापित करो, घर को चलाओ, घर में रहो और रसोई का भोग करो। इस दीक्षा और वैराग्य की बात को छोड़ दो।' ___'जम्बू! तुम इतने विनीत हो फिर भी मां की बात को नहीं मानते? यह अच्छा नहीं है। तुम्हें उत्तराध्ययन का पहला अध्ययन पढ़ लेना चाहिए, जिससे विनय का महत्त्व समझ में आए।' पिता ने जोश, रोष और अधिकार की भाषा में जो कहा, उससे गाथा वातावरण में ऊष्मा और तनाव भर गया। जब भी मन के प्रतिकूल परम विजय की कोई बात होती है, मन की जो धारणा है या मोह है उस पर चोट होती है तो सचमुच वातावरण तनाव से भर जाता है। सेठ ऋषभदत्त ने कहा-'जम्बू! अब बोलो क्या कहना चाहते हो। तुम्हारा क्या वक्तव्य है? क्या कथ्य है और क्या प्रतिपाद्य है? क्या माता-पिता की बात मानोगे? क्या विनीतता का परिचय दोगे?' ___मां ने करुणाई स्वर में कहा-'यदि तुम हमें माता-पिता मानते हो तो तुम्हें हमारी यह इच्छा पूरी करनी होगी। हिव कह्यो करे एक माहरो रे हां, पछे लीजै संजम भार। जो माता पिता कर लेखवो रे हां परणे आठोंइ नार। मेरे नंदना। माता और पिता दोनों का स्वर एक हो गया। जम्बूकुमार अकेला रह गया। वे दो मिल बावन वीर हो गये। जम्बूकुमार ने अंतर्द्वन्द्व से निकलना चाहा तो उलझन सामने आ गई। उसने चिन्तन किया-अब कुछ सोचना तो 150
SR No.034025
Book TitleGatha Param Vijay Ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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