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१३. पवयण भत्ती
प्रवचन में क्या समाविष्ट है? यह कहते हैं
छहदव्वणवपदत्थे पंचत्थिकाय सह सत्ततच्चाणि। लोयालोयं वि दिसदितं पवयणं सया पणमामि॥१॥
नव पदार्थ पंचास्किाय हैं सात तत्त्व छह द्रव्य यहाँ लोक-अलोक का ज्ञान तथा जो विस्तृत ढंग से बता रहा। वह ही प्रवचन कहलाता है जिसको जिनवर कहते हैं जिनवर को भी नमन हमारा जिनवाणी को नमते हैं॥१॥
अन्वयार्थ :[छहदव्व णव पदत्थे] छह द्रव्य, नौ पदार्थ [पंचत्थिकाय सह सत्त तच्चाणि] पंचास्किाय के साथ सात तत्त्व [ लोयालोयं] और लोक-अलोक [वि] भी [दिसदि] देता है [तं] उस [पवयणं] प्रवचन को [सया ] सदा [ पणमामि ] प्रणाम करता हूँ।
भावार्थ : प्रकृष्ट वचनों को प्रवचन कहते हैं। ऐसे प्रकृष्ट वचन तीर्थंकर अरिहन्त के होते हैं। उनके वचनों से ऐसे द्रव्य आदि का ज्ञान होता है जो अन्य के वचनों में संभव नहीं है। अरिहन्त प्रवचन में ही छह द्रव्यों का कथन है।
भव्यात्मन् ! इन द्रव्यों के श्रद्धान से आत्मा में सम्यग्दर्शन होता है। जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये छह द्रव्य हैं। तुम विचार कर सकते हो कि ब्रह्माण्ड में फैले इन द्रव्यों से आत्मा में सम्यक्त्व कैसे होगा? बाह्य पर द्रव्य क्या हमारी आत्मा की परिणति को समीचीन बना सकते हैं? हाँ भ्रात! अवश्य बना सकते हैं। सर्वप्रथम समीचीन पथ पर चलने की शुरुआत इन्हीं द्रव्यों के श्रद्धान से होगी। जब आपको सर्वज्ञ कथित द्रव्य व्यवस्था का निश्चय होगा तभी सम्यक रूप से आत्म अवस्था का निश्चय होगा। इतने स्वार्थी भी ना बनो कि हम अपने सिवाय विश्व की व्यवस्था को न समझ पाएँ।
हे आत्मन् ! अपना आत्मा इन छह द्रव्यों के साथ सह-अस्तित्व रखता है। पुद्गल द्रव्य के श्रद्धान के बिना आत्मा की पुद्गल से भिन्न पहचान नहीं हो सकती है। कर्म पुद्गलों का आत्मा से एकमेक होना और वैभाविक परिणति से इस संसार में परिभ्रमण होना अन्यथा बन नहीं सकता है। जब यह आत्मा कर्ममुक्त होकर ऊर्ध्वगमन करेगा तो इसका गमन कहाँ तक होगा, यह धर्मद्रव्य पर निर्भर करेगा। एक स्थान पर आत्मा किस द्रव्य के आधार से स्थिर बना रहेगा? यह अधर्म द्रव्य के अस्तित्व से ज्ञात होता है। ये सभी द्रव्य कहाँ रहते हैं और इन द्रव्यों के बिना भी कोई स्थान है यह आकाश द्रव्य के बिना सम्भव नहीं है। इन सभी द्रव्यों के परिणमन का मुख्य बाह्य कारण क्या है? तो काल द्रव्य का अस्तित्व इस परिणमन को बनाए रखता है। इस तरह छह द्रव्य इस संसार की व्यवस्था स्वत: बनाए हुए हैं। इन द्रव्यों को कोई बनाने वाला ब्रह्मा नहीं और न कोई मिटाने वाला महेश है। यह द्रव्य स्वभाव से हैं और बने रहेंगे। इन्हीं द्रव्यों से लोक-अलोक के विभाग का निश्चय होता है। आकाश एक अखण्ड द्रव्य है।