________________
धम्मकहा 8849
(१६) यमदण्ड कोट्टपाल
आहीर देश के नासिक्य नगर में राजा कनकरथ अपनी स्त्री कनकमाला के साथ सुख से जीवन व्यतीत करते थे। उनके एक यमदण्ड नाम का कोट्टपाल था। उसकी माता यौवन अवस्था में ही विधवा हो गई थी। अति संदरी वह धीरे-धीरे व्यभिचारिणी बन गई। एक दिन उसकी पुत्रवधू ने मूल्यवान आभूषण उसे दिए। उन आभूषणों को अपने कंठ में सज्जित करके वह रात्रि में पहले से ही संकेतिक जार के समीप जा रही थी। यमदण्ड ने अंधकार में भी 'यह कोई सुंदरी है' इस प्रकार समझकर के उसका एकांत में सेवन किया। यमदण्ड ने उसका आभूषण लाकर अपनी स्त्री को समर्पित किया। उसकी स्त्री ने उस आभूषण को देखकर कहा- यह तो मेरा है, मैंने सास के हाथ में रखने के लिए दिया था। स्त्री के वचन को सुनकर उसने चिंतन किया कि मैंने जिसके साथ उपभोग किया है वह मेरी माँ होगी। यमदण्ड ने माता के जार के संयोग स्थान पर स्वयं जाकर के उसका पुनः सेवन किया और उसमें आसक्त होकर के वह गूढ़ रीति से कुकर्म में संलग्न हो गया। उसकी स्त्री इस प्रकार के कुकर्म को सहन नहीं करती हुई, कोप से धोबिन को कहती है। वह धोबिन मालिन को कह देती है। वह मालिन फिर रानी को कहती है। रानी राजा से निवेदन करती है राजा उसके कुकर्म का निर्णय करके गुप्तचर से उसके कुकर्म का निर्णय करके कोटपाल को दण्डित करता है। दण्ड के दुःख से मरकर के वह कोटपाल दुर्गति को प्राप्त होता है।
נ
נ
נ
नरकगति में छेदन-भेदन का दुःख है, तिर्यंचों में वध(मारने) का दुःख है,
देवगति में राग का दुःख है और मनुष्यों में बहुत विपत्ति देखी जाती है॥९॥ अ.यो.