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शिक्षाप्रद कहानिया सोचने लगा कि देवदूत मुझे लेने आया है क्योंकि मैं धनी भी हँ और मैने दान-पुण्य भी भरपूर मात्रा में किया है। उधर दयामल भी मन ही मन सोचने लगा कि- मेरे पास तो न धन ही था और न ही मैंने जीवन में कोई दान-पुण्य ही किया है, अतः मेरे जैसे पापी को तो यमदूत ही लेने आएगा। लेकिन यह क्या? हुआ इसके बिल्कुल विपरीत।
गोरा देवदूत दयामल से बोला- 'तुम मेरे साथ इस पुष्पक विमान में बैठो। तुम्हें मेरे साथ चलना है।'
काला यमदूत धनपाल से बोला- 'महाशय! तुम मेरे साथ इस लोहे के पिंजरे में आ जाओ। तुम्हें मेरे साथ चलना है।'
यह सुनकर धनपाल आश्चर्यचकित होते हुए बोला- 'महाशय! शायद आपको कोई गलतफहमी हो रही है। मेरा नाम धनपाल है, मैंने जीवन भर दान-पुण्य के कार्य किए हैं जबकि दयामल ने जीवन में एक पैसा भी दान नहीं किया है, उसकी रग-रग से मैं वाकिफ हूँ। अतः लोहे के पिंजरे में जाने लायक दयामल है, मैं नहीं। फिर आप ऐसी उलटी गंगा क्यों बहा रहे हैं?'
यह सुनकर यमदूत बोला- 'देखो भाईसाहब! हम तो हैं धर्मराज के नौकर। उन्होंने हमें जो आदेश दिया है, हम तो उसी का पालन कर रहे हैं। और हाँ अगर तुम्हें यकीन नहीं हो तो हमारे पास उनका लिखित लैटर भी है, चाहो तो उसे देख लो। फोन की सुविधा वहाँ अभी हुई नहीं है, नहीं तो हम तुम्हारी बात फोन से भी करवा देते अतः अब तुम चुपचाप हमारे साथ चलो और जो भी बात तुम्हें करनी है वह धर्मराज की सभा में ही करना। यहाँ कोई फायदा नहीं।
पलक झपकते ही वे लोग जा पहुँचे धर्मराज की सभा में। धर्मराज अपनी सीट पर विराजमान थे। और वहाँ उपस्थित आत्माओं को उनके कर्मों के आधार पर स्वर्ग-नरक की प्रवेश टिकट दे रहे थे। यमराजों ने इन्हें भी लगा दिया लाइन में क्योंकि वहाँ भी भीड़ अधिक थी। कुछ समय बाद इनका भी नम्बर आ ही गया। और धर्मराज के