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________________ 77 शिक्षाप्रद कहानिया करता है। मैं यहाँ पर एक बात कहना चाहता हूँ कि आज हर आदमी यह कहता सुनाई पड़ता है कि मेरे पास बहुत पैसा है और पैसे के बल पर मैं हर काम कर सकता हूँ। इसीलिए आज हर आदमी पैसे की रेलम-पेल में भाग रहा है। इसके लिए वह उचित-अनुचित सब कुछ करने को तैयार है। लेकिन यह नितान्त भ्रम के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है कि पैसा ही सब-कुछ कर सकता है। हाँ पैसा कुछ हो सकता है, लेकिन सब-कुछ कदापि नहीं। ऊपर जिस लड़के की हम चर्चा कर रहे हैं। सम्भव है उस समय उसकी जेब में पैसे हों। लेकिन, उस पैसे से क्या उस समय वह वहाँ भोजन खरीद सकता था? नहीं खरीद सकता था क्योंकि वहाँ आस-पास कोई खाने-पीने की वस्तुओं की दूकान ही नहीं थी। अतः मूल्य पैसों का नहीं अपितु मूल्य होता मानवीय मूल्यों का, हमारे शुभ भावों का। और मैं तो यहाँ तक मानता हूँ कि इस सृष्टि में जो भी खेल चल रहा है, वह सब भावों/विचारों का ही खेल है इसके अतिरिक्त कुछ नहीं। इस सम्बन्ध में लॉ ऑफ अट्रैक्शन भी कहता हैं कि- 'सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में हम जिस चीज पर ध्यान केंद्रित करते है, जिस चीज के बारे में ज्यादा सोचते हैं जिसकी ज्यादा चर्चा करते हैं उसमें आश्चर्यजनक रूप से ही विस्तार होता जाता है।' एक सच्ची घटना मैंने अपनी आँखों से देखी है। एक बहुत ही धनी आदमी था। उसे अपने पैसे पर बड़ा घमण्ड था। वह बात-बात पर यह कहता था कि 'मेरे सब काम पैसे से होते हैं और होते रहेंगे। यहाँ तक कि वह अपने नाते-रिश्तेदारों, भाई-बहन, पुत्र-स्त्री आदि से भी यही कहता था।' धीरे-धीरे उसका अन्त समय आ गया और एक दिन उसे ऐसी भयंकर बीमारी हो गई कि वह न तो चल पा रहा था, न बोल पा रहा था। तब वे ही नाते-रिश्तेदार उसे अपने कंधों पर उठाकर अस्पताल लेकर गए। और कुछ दिन बाद उसका स्वर्गवास हो गया तो वही लोग अपने कंधों पर उठाकर उसे श्मशान लेकर गए।
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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