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________________ 76 __ शिक्षाप्रद कहानिया बल्कि उसे दृढ़ विश्वास भी हो गया और उसने स्वयं भी संकल्प लिया कि वह भी प्राणिमात्र के हित के कार्य करेगा। संयोग देखिए जब वह लड़की जवान हुई तो उसे एक ऐसी भयंकर बीमारी ने घेरा कि आस-पास कहीं उसका इलाज नहीं हो पा रहा था। डॉक्टरों ने कहा कि शहर में एक बहुत बड़ा निजी अस्पताल है शायद वहाँ इसका इलाज हो जाए। अतः इसे वहाँ ले जाइए। लड़की के घरवाले उसे वहाँ ले गए। डॉक्टर को मरीज का सारा विवरण मिला। उसे पढ़कर डॉक्टर को कुछ पुरानी बातें याद आई और वे तुरन्त लड़की का इलाज करने पहुंच गए। डॉक्टर का अनुमान सही निकला। यह वही लड़की थी जिसने कभी उसे एक गिलास दूध पिलाया था। उसने बड़े ही मनोयोग से लड़की का इलाज प्रारम्भ किया। उत्तम इलाज और सही देख-रेख से लड़की शीघ्र ही उस भयंकर बीमारी से मुक्त हो गयी। और होती भी क्यों नहीं डॉक्टर ने पवित्र भावों से और मन लगा कर उसका इलाज जो किया था। और इसमें कोई सन्देह नहीं कि पवित्र भावों से किया गया कोई भी कार्य कभी निष्फल नहीं होता। अतः लड़की की स्वस्थता को देखते हुए उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। इलाज को खर्चा बहुत ज्यादा था, लेकिन डॉक्टर ने बिल के नीचे कृतज्ञता सहित लिखा- इस बिल का भुगतान वर्षों पहले एक गिलास दूध से किया जा चुका है। और जैसे ही वह बिल लड़की के हाथ में पहुँचा उसे पढ़ते ही लड़की के मुँह से अनायास ही निकला- 'भलाई कभी बेकार नहीं जाती।' क्योंकि वह अखबार बेचने वाला लड़का ही अब डॉक्टर बन गया था और वह ही इस निजी अस्पताल का मालिक था। अतः हम सबको भी पुण्य के कार्य करने चाहिए तथा पापकार्यों से बचना चाहिए। कहा भी जाता है कि त्रिभिवषैस्त्रिभिर्मासैः त्रिभिः पक्षस्त्रिभिर्दिनैः। अत्युत्कटैः पापपुण्यौरिहैव फलमश्नुते॥ अर्थात् प्रत्येक प्राणी तीन वर्ष में, तीन मास में, तीन पक्ष में और तीन दिन में ही स्वकृत महान् पुण्य-पाप का फल इसी जन्म में प्राप्त
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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