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________________ 65 शिक्षाप्रद कहानिया थोड़ी ही देर बाद वहाँ एक चौथा आदमी आया। उसे भी प्यास लगी थी। उसने देखा तीन आदमी मुँह लटकाए हुए बैठे हैं। लेकिन उसे तो अपनी प्यास बुझानी थी। अतः रस्सी-बाल्टी उठाई और लगा पानी निकालने। यह देखकर वे तीनों बोले- 'भाईसाहब! हमें भी पानी पिलाना।' हम भी बहुत प्यासे हैं। यह सुनकर वह बोला- 'यहाँ पर सब साधन उपलब्ध थे। पानी निकालते और पी लेते। तुम तो यहाँ इस तरह मुंह लटकाए उदास बैठे हो जैसे तुम सब की नानी मर गई हो।' यह सुनकर पहला बोला- 'देख भाई मैं अमीरजादा हूँ। खुद पानी निकालकर पीऊँ तो मेरी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी। दूसरा बोला- 'मैं नबाबजादा हूँ। मैंने पानी निकालने के लिए थोड़े ही नबाब के घर में जन्म लिया है। तीसरा बोला- 'मैं शहजादा हूँ। अतः तुम समझ ही सकते हो कि भला, मैं पानी कैसे निकाल सकता हूँ। तब चौथा बोला- 'ठीक है, मैं सब समझ गया। तुम बैठे रहो। और उसने कुएं से बाल्टी भरकर पानी निकाला, अपनी प्यास बुझाई और बाकी का पानी वहीं उनके सामने उडेल दिया।' यह देखकर वे तीनों आश्चर्यचकित होते हुए बोले- 'अरे! ये तुमने क्या किया? अच्छा, चलो जो किया सो तो किया अब तुम एक काम करो और पानी निकालो और हम सब को पिलाओ। यह सुनकर वह बोला- 'अरे ओ! सुनो अमीरजादे, नबाबजादे और शहजादे! मैं हूँ हरामजादा, पानी पीता हूँ, पिलाता किसी को नहीं।' और वह वहाँ से रफू-चक्कर हो गया। अब आप ही बताइए ऐसी मान-कषाय किस काम की, जिससे अपने ही प्राण संकट में पड़ जाए। अतः हम सबको न केवल मान-कषाय से अपितु उक्त सभी कषायों से यथासम्भव बचने का प्रयास
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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