________________
53
शिक्षाप्रद कहानिया दिए और वह मन ही मन स्वयं भी तृप्त हो गया। जैसे वे सब उसने ही खाएं हों।
__यह देखकर दयालु बोला- अरे ओ मूर्ख! ये फल तो तुम्हारी पत्नी ने देवता को चढ़ाने के लिए दिए थे। देवता के चढ़ावे को भी तूने इस साँड को खिला दिया। अब तो अवश्य ही देवता तुझ पर नाराज होंगे तुझे बहुत भारी पाप लगेगा। अब तेरी खैर नहीं।
यह सुनकर दयालु फिर मन्द-मन्द मुस्कराया और बोला- चलो आगे चलते हैं और जो होगा देखा जाएगा तुम जरा-भी चिन्ता न करो। लेकिन, अभी वे कुछ ही दूर चले होंगे कि उन्हें एक आवाज सुनाई दीहाय प्यास! पानी! हाय गला सूख गया! कोई बचाओ?
दयालु ने देखा कि सामने ही एक तीर्थयात्री गर्मी और प्यास से तड़प रहा है। वह भागकर यात्री के पास पहुँचा और तुरन्त थैले में से अपनी पानी की बोतल निकालकर सारा पानी यात्री को पिला दिया। यात्री के प्राण बच गए और वह बार-बार उसे आशीर्वाद देने लगा।
यह देखकर कृपालु बोला- अरे ओ महामूर्ख! अभी आधी दूरी भी तय नहीं हुई है। और तूने अपनी सारी आवश्यक वस्तुएं खत्म कर दी। अब तू यात्रा कैसे करेगा? इसलिए मैं तो तेरे को अब यही सलाह दूँगा कि तू अपने घर वापस चला जा हो गई तेरी तो यात्रा पूरी। उसका ऐसा कहने का एक कारण यह भी था कि कहीं ये अब मेरी वस्तुओं में से न कुछ माँग ले।
दयालु ने भी मन ही मन सोचा- शायद यह ठीक ही कह रहा है और वह चल दिया वापस अपने घर की ओर।
कृपालु चल दिया अपनी तीर्थयात्रा पर क्योंकि उसे तो देवता से कृपा प्राप्त करनी थी। उसके नाम की सार्थकता भी तो यही थी।
उधर जब दयालु अपने घर के नजदीक पहुँचा ही था कि उसके बच्चे दौड़ते हुए उससे मिलने आए। इससे दयालु को समझने में जरा भी