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शिक्षाप्रद कहानियां
जब वे जा रहे थे रास्ते में बीहड़ जंगल आया। वहाँ पर उन्होंने देखा कि एक कुत्ता घायल अवस्था में पड़ा हुआ दर्द से कराह रहा है। शायद उसे किसी खुंखार जंगली जानवर ने घायल किया था। यह देखकर दयालु को उस पर दया आ गयी। वह अपने साथ थोड़ा दूध लाया था। सबसे पहले तो उसने वह दूध उसे पिला दिया। उसके पास कुछ मरहमादि दवाईयाँ भी थी वे उसने कुत्ते का घाव साफ करके उस पर लगा दी। और पहनी हुई धोती का एक हिस्सा फाड़कर उसके घाव पर पट्टी भी बाँध दी। अब वह कुत्ता बड़ी ही राहत महसुस कर रहा था।
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कृपालु खड़ा-खड़ा सब माजरा देखता रहा और अन्त में दयालु से बोला- देख भाई दयालु, अब तु मुझे स्पर्श मत करना, क्योंकि अभी-अभी तूने जिस प्राणी का उपचार किया है न यह बहुत ही अपवित्र होता है। इसे हाथ लगाने से तू भी अपवित्र हो गया है। और हाँ एक बात और सुन ले अब तेरी तीर्थयात्रा भी सफल नहीं होगी । देवता भी तेरे से नाराज हो जाएंगे, वे भी तुझे फल नहीं देंगे।
यह सुनकर दयालु थोड़ा मुस्कराया और बोला- अच्छा ठीक है, चलो आगे चलते हैं। अभी वे कुछ ही दूर चले थे कि उन्होंने देखा एक वृद्ध भिखारी भूख के कारण तड़प रहा है, न जाने कब उसके प्राण निकल जाए। यह देखकर दयालु द्रवित हो गया उससे उसका दुःख देखा न गया। और थैले में से अपने लिए लाई हुई रोटी निकालकर उसे देने
लगा।
यह सब देखकर कृपालु झुंझलाकर बोला- अरे ओ दया के पुजारी कहीं तेरा दिमाग तो नहीं सरक गया है ? सारी रोटी इस भिखारी को दे देगा तो रास्ते में तू क्या खाएगा? उसको पड़ा रहने दे, और जिस काम के लिए तेरी घरवाली ने इतने सवेरे उठकर प्यार से तेरे लिए ये रोटियाँ बनाई थी उस काम को पूरा कर ।
लेकिन दयालु कहाँ सुनने वाला था। उसका तो स्वभाव ही था प्राणियों पर दया करना। और रोटी ही नहीं उसके थैले में पत्नी ने कुछ फल भी रखे थे, वे सब भी उसने उस भिखारी को बड़े ही प्रेम से खिला