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________________ 37 शिक्षाप्रद कहानिया तीनों ने बिना किसी से पूछे-ताछे एक-एक गन्ना तोड़ लिया और लगे गन्ने का रस चूसने। तीनों को बड़ा मजा आ रहा था। खेत का मालिक भूपसिंह दूर मेड़ पर बैठा यह सब देख रहा था। उसे गुस्सा तो बहुत आ रहा था। लेकिन वह बेचारा कुछ कर नहीं पा रहा था। क्योंकि वह था अकेला और ये थे तीन। वह बैठा-बैठा सोच रहा था कि मैं कैसे इनको समझाऊँ कि बिना मालिक से पूछे किसी की वस्तु ले लेना चोरी करना होता है। और चोरी का फल दण्ड होता है। अतः वह इन तीनों को पीटने का उपाय सोचने लगा। सोचते-सोचते उसे एक उपाय सूझ भी गया। उसने सोचा सर्वप्रथम इन तीनों में फूट डालकर इनको अलग-अलग किया जाए। वह दौड़कर उनके पास गया। उसने सर्वप्रथम पण्डित जी के चरणों में झुककर उनकी पद रज माथे पर लगायी। लाला जी को हाथ जोड़कर प्रणाम किया। और फिर अपना डण्डा सम्भालते हुए पटवारी से बोला- भाई पटवारी साहब! पण्डित जी तो हमारे बेटे-पोतों को पढ़ाते हैं, हमें ब्रह्म का ज्ञान कराते हैं। उन्होंने गन्ना तोड़ लिया तो अच्छा ही किया। लाला जी से हम चीनी, नमक, तेल, गुड, दालादि उधार लेते हैं। अतः उन्होंने गन्ना तोड़ा तो चलो अच्छा ही किया। लेकिन, पटवारी साहब तुम तो कचहरी में हम पर झूठे-सच्चे जुर्माने लगाते हो, अदा न करने पर जेल में भी भिजवा देते हो। अतः एक हिसाब से तो तुम हमारे शत्रु ही हुए। फिर तुमने मेरे खेत से गन्ना क्यों तोड़ा? इतना कहकर भूपसिंह पिल पड़ा पटवारी जी पर और ताबड़-तोड़ जमा दिए कई डण्डे और छीन लिया अपना गन्ना। जब यह दुर्घटना घट रही थी तो पण्डित जी और लाला जी चुपचाप खड़े-खड़े सब देखते रहे। और मन ही मन सोच रहे थे, यह किसान पटवारी को पीट रहा है तो पीटता रहे। हमें क्या लेना-देना? हमें तो यह बेचारा कुछ कह नहीं रहा है। अतः हमें तो इस विवाद से दूर ही रहना चाहिए।
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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