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शिक्षाप्रद कहानियां
ड्राइवर को आदेश दे दिया कि इसे अपनी बगल वाली सीट पर बिठा लो। उसने वैसा ही किया और उसे भी बिठा लिया। अब गाड़ी में कोई सीट खाली नहीं थी ।
यात्रा पुनः प्रारम्भ हो गई और संयोगवशात् उसे फिर एक महिला दिखाई दी और उसने तुरन्त ड्राइवर को आदेश दिया कि गाड़ी रोको और उस महिला को भी गाड़ी में बिठा लो ।
यह सुनकर ड्राइवर बोला- मेम साहब ! अब तो गाड़ी में जगह ही नहीं है, इसमें पाँच व्यक्ति ही बैठ सकते हैं। अब या तो आप गाड़ी से उतर जाओ या इनमें से किसी एक को उतार दो, तभी इनको बिठाया जा सकता है।
यह सुनकर मेम साहब बोली - भला ये कैसे हो सकता है? तभी उसके मन में विचार आया कि क्यों न ड्राइवर को ही नीचे उतार दिया जाए। और उसने ऐसे ही किया। ड्राइवर को नीचे उतार दिया और उस सीट पर महिला को बिठा दिया |
लेकिन, अब समस्या यह उत्पन्न हो गई कि गाड़ी को कौंन चलाए ? उनमें से तो किसी को गाड़ी चलानी ही नहीं आती थी।
मित्रों ! उक्त दशा केवल उस धनी स्त्री की ही नहीं है, अपितु यह तो हम सब की दशा है। हमारा आत्मा रूपी ड्राइवर जो हमारे अन्दर विद्यमान है, उसे तो हमने एक साइड कर रखा है और मित्र रूपी शत्रुओं-क्रोध-मान-माया - लोभादि को अपने अन्दर बिठा रखा है। और वो ही हमें चला रहे हैं, वो ही हमारे ड्राइवर बने हुए हैं। अतः हम सबको अपने असली ड्राइवर को जानना चाहिए, जिसको जाने बिना हमारी यात्रा सम्भव ही नहीं है। कहा भी जाता है कि
"कामं क्रोधं लोभं मोहं त्यक्त्वात्मानं भावय कोऽहम् । आत्मज्ञानविहीना मूढास्ते पच्यन्ते नरकनिगूढाः ॥ "