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शिक्षाप्रद कहानियाँ
भरी होती हैं, जो कि एक अनपढ़ व्यक्ति का भी बड़े ही सरल तरीके से मार्गदर्शन करती हैं। जो मानवमात्र में जीवन जीने की कला को विकसित करती हैं। उक्त शीर्षक के सन्दर्भ में हमारे शास्त्रों में एक कहानी प्रचलित है।
उत्तर भारत के किसी गाँव में भुवन नाम का एक किसान रहता था। उसकी पत्नी का नाम था कस्तूरी । उनके यहाँ एक पुत्र का जन्म हुआ। भाग्यवशात् उसी समय उनके घर के पास ही एक नेवले का भी जन्म हुआ लेकिन उसका जन्म होते ही उसकी माँ परलोक सिधार गयी । अतः किसान व उसकी पत्नी ने जब यह देखा तो वे नेवले को अपने घर ले आए और अपने पुत्र की तरह ही उसका भी पालन-पोषण करने लगे। वह भी उनके परिवार का एक अंग बन गया। दोनों बालक खूब खेलते और आपस में खूब स्नेह करते ।
एक बार किसी कार्यवशात् किसान को कहीं बाहर जाना पड़ा। उसी समय उसकी पत्नी भी जल लेने कुएं पर चली गई । घर में दोनों बालक थे। उसी समय न जाने कहाँ से एक काला जहरीला साँप घर में घुस आया। नेवले ने जब यह सब देखा तो वह बालक की सुरक्षा के लिए तैयार हो गया और इसे अपना कर्तव्य समझकर साँप के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। जिससे उसका मुख खून से लथपथ हो गया। और वह एक रक्षक की तरह आकर दरवाजे पर सो गया। वह खुश भी बहुत था; क्योंकि उसने बालक की रक्षा कर उसकी जान बचाई थी। इसलिए वह नींद में ऐसे दिख रहा था जैसे हँस रहा हो ।
उसी समय कस्तूरी का भी घर में प्रवेश हुआ। और उसने जैसे ही प्रवेश द्वार पर नेवले को नींद में भी हँसते हुए देखा तो तुरन्त उसकी दृष्टि उसके मुख पर गई मुख खून से सना हुआ था और उसने तुरन्त यह निर्णय कर लिया कि जरूर इसने मेरे बालक को खा लिया है। और बिना कुछ भी सोचे-समझे सिर पर रखा हुआ घड़ा उस नेवले पर पटक दिया। जिससे नेवला थोड़ी देर तो छटपटाया लेकिन कुछ ही क्षण बाद
वह मर गया।