________________
12
शिक्षाप्रद कहानियां
७. एकता में बल है सौराष्ट्र (गुजरात) के एक गाँव में एक व्यापारी के पाँच पुत्र रहते थे। एक बार वे पाँचों धन कमाने के उद्देश्य से बम्बई चले गए। वहाँ पहले ने एक, दूसरे ने दो, तीसरे ने तीन, चौथे न चार और पाँचवें ने पाँच लाख रूपये कमाए। तथा पाँचों अपना-अपना धन लेकर अपने गाँव की ओर चल दिए।
उन दिनों यातायात के साधन आज जैसे तो होते नहीं थे। या तो बैलगाड़ी होती थी या घोड़ा-गाड़ी (ताँगा) होती थी या लोग पदयात्रा करते थे। वे पाँचों भी पैदल ही चल दिए। मार्ग में एक बहुत गहन जंगल पड़ता था। वहाँ से गुजरते हुए लोग डरते थे, क्योंकि वहाँ एक बहुत ही क्रूर डाकू रहता था। और वह लोगों को लूटता था। जब ये पाँचों भाई वहाँ से गुजर रहे थे तो वह एक पेड़ पर छिपकर बैठा था। उसने दूर से ही इन पाँचों को देख लिया और अनुमान लगा लिया कि हो न हो इनके पास बहुत धन है। वह इनको लूटने की योजना बनाने लगा। योजना बनाते-बनाते वह सोचने लगा कि- मैं तो अकेला हूँ और ये पाँच हैं मैं इनसे मुकाबला कैसे करूँ। वह यह सब सोच ही रहा था कि वे पाँचों चलते-चलते उस पेड़ के नीचे पहुँच गए जिस पर डाकू बैठा हुआ था। पेड़ की छाया देखकर और थकावट के कारण उन्होंने सोचा क्यों न थोड़ी देर यहाँ विश्राम कर लिया जाए? और वे सब पेड़ के नीचे विश्राम करने लगे।
विश्राम करते-करते सभी आपस में वार्तालाप करने लगे। और किन्हीं घर-गृहस्थी की बातों के कारण उनमें तू-तू, मैं-मैं हो गई। कलह इतनी बढ़ गयी कि अन्त में पाँचों अलग-अलग मार्गों पर चल दिए, जिससे कि आपस में बात ही न हो सके।
अब डाकू ने मन ही मन विचार किया कि अरे! ये तो बहुत अच्छा हुआ। मेरी समस्या का समाधान तो इन्होंने स्वयं ही कर दिया।