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शिक्षाप्रद कहानिया ____ अभी वे कुछ ही दूर और गये होंगे कि फिर वही स्थिति, बैठे थे पाँच-सात समाज सुधारक और उनको देखते ही बोले- 'अरे देखो! क्या जमाना आ गया है, अभी तक सुना ही था औरतों का जमाना आ गया है, आज देख भी लिया। देखो औरत तो ठुमक-ठुमक कर गधे की सवारी कर रही है और बेचारा आदमी पैदल चल रहा है। यह तो इसके लिए डूब मरने की बात है।'
कुम्हार-कुम्हारी ने भी यह सारी बात सुनी। कुम्हारी बोली- 'मैं तो आप से पहले ही कह रही थी। लेकिन, आप ही नहीं मानते अब सुनो लोगों की बातें। कुछ सोचकर कुम्हारी बोली- 'मेरे दिमाग में एक आइडिया है क्यों न हम दोनों ही गधे पर सवार हो जाएँ। फिर तो लोगों को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।'
कुम्हार को भी कुम्हारी का आइडिया अँच गया। और वे दोनों हो गये सवार गधे पर तथा बढ़ने लगे अपने गन्तव्य की ओर। लेकिन, वे क्या जाने इस संसार की मनो-दशा को। उन्हें नहीं पता की यह भी लोगों को मंजूर नहीं होगा। और हुआ भी यही अभी वे कुछ ही दूर गये होंगे कि फिर वही स्थिति। बैठे थे पाँच-सात समाज के कर्णधार। और जैसे ही वे उनके पास से गुजरे सभी बोल उठे एक स्वर में। देखों भाई! कैसा कलयुग आया है, प्रकृति का सबसे निरीह प्राणी है बेचारा गधा।
और इनको देखों दोनों साँड-साँडनी जैसे अस्सी-अस्सी किलो से कम नहीं होंगे, लदे जा रहें है इस बेचारे पर। शर्म भी नहीं आती इनको। क्या मुँह दिखाएंगे भगवान् के घर जाकर। अरे, प्राणियों पर दया करनी चाहिए। संयोगवश उन सबमें एक पंडित जी भी उपस्थित थे उन्होंने कहा गधे से तो हमें शिक्षा लेनी चाहिए वह तो गुरु के समान है। यथा
अविश्रामं वहेत् भारं, शीतोष्णं च न विन्दति। ससन्तोषस्तथा नित्यं, त्रीणि शिक्षेत् गर्दभात्॥
अर्थात् कितनी भी गर्मी-सर्दी हो बिना विश्राम किए भार ढोता है तथा रूखा-सूखा मिल जाए उसी में संतोष कर लेता है। हमें गधे से ये तीन शिक्षाएँ लेनी चाहिए।