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शिक्षाप्रद कहानिया उनके जीवन का निर्वाह होता था। सवारी के नाम पर उनके पास एक गधा था। एक दिन उन दोनों का बाजार जाने का प्रोग्राम बना। आज कल की भाषा में कह सकते है कि माल में शॉपिंग करने का प्रोग्राम बना। कुम्हार बोला- 'हम गधे को भी अपने साथ ले चलते हैं वापसी में सामान इसकी पीठ पर लाद देंगे। जिससे हमें आराम रहेगा।'
यह सुनकर कुम्हारी बोली- 'ठीक है, यह तो बहुत ही अच्छी बात है इसी बहाने ये बेचारा भी बाजार घूम आएगा। इससे इसे भी प्रसन्नता मिलेगी और वे दोनों गधे को साथ लेकर चल दिए बाजार की ओर।
अभी वे कुछ ही दूर गये थे कि रास्ते में पाँच-छः आदमी निठल्ले टाइप के बैठे ताश खेल रहे थे, जैसे ही इन सज्जनों की दृष्टि इन लोगों पर पड़ी तो कहने लगे- 'अरे! देखो कितने मूर्ख हैं सवारी साथ में है, और पैदल जा रहें हैं।'
यह बात उन दोनों के कानों तक पहुँची। कुम्हार सोचने लगाबात तो ठीक है अतः वह गधे पर बैठ गया। और वे आगे चलने लगे। लेकिन, अभी मुश्किल से वह आधा किलोमीटर भी नहीं चले कि रास्ते में फिर कुछ सज्जन बैठे हुए थे। जब उन्होंने उनको देखा तो बोले- 'अरे देखों भाई! क्या जमाना आ गया है, यह औरत बेचारी कितनी कमजोर है, शायद बीमार भी है, दवाई लेने जा रही है। एक ने तो अल्ट्रासाउड तक कर दिया बोला- 'अरे! हो न हो बेचारी गर्भ से हो और इस मुस्टंडे को देखो अच्छा भला हट्टा-कट्टा है। फिर भी खुद गधे पर बैठ कर जा रहा है और इस बेचारी को पैदल दौड़ा रहा है।'
कुम्हार ने ये सारी बातें सुनी तो उसे लगा कि यह लोग ठीक ही तो कह रहे हैं। अतः तुरंत नीचे उतरा और कुम्हारी से बोला- 'तुम गधे पर बैठ जाओ।' कुम्हारी बोली- 'आप कैसी बात करते हो मैं भला कैसे बैठ सकती हूँ। लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे?' लेकिन, कुम्हार ने उसकी एक न सुनी और बैठा दिया गधे पर और चल दिया अपने गन्तव्य की ओर।