SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 186 शिक्षाप्रद कहानियां गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय॥ यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। शीष दिए जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जाना॥ कबीरदास के उक्त कथन से यह सुस्पष्ट होता है कि इस नश्वर शरीर की उपादेयता इसी में है कि इससे गुरु की सेवा-भक्ति करके वास्तविक ज्ञान को प्राप्त कर लिया जाए। तथा वह वास्तविक ज्ञान तभी प्राप्त हो सकता है। जब हम नि:स्वार्थ भाव से गुरु के प्रति अपनी सत्यनिष्ठा रखें। इस संदर्भ में हमारे सामने अनेक ऐसे दृष्टांत है, जिनको हम अपने प्रेरणास्रोत बना सकते हैं। उन्हीं में से एक दृष्टांत है संत दादु और उनके शिष्य रज्जब का जो गुरु निष्ठा का एक जीवंत उदाहरण है। एक बार संत दादू अपने शिष्य रज्जब तथा और भी बहुत सारे शिष्यों के साथ वन में परिभ्रमण कर रहे थे। चलते-चलते रास्ते में एक नदी आ गयी। नदी में पानी तो अधिक नहीं था, लेकिन पानी कम होने के कारण उसमें कीचड़ इतना अधिक जम गया था कि नदी पार करना बड़ा कठिन था। यह देखकर सभी शिष्य सलाह-मशवरा करने लगे कि क्या किया जाए? जिससे गुरुजी नदी को सुगमतापूर्वक पार कर लें। यह सोचते-सोचते उन्होंने देखा कि नदी से कुछ ही दूर पत्थर पड़े हुए हैं। अतः वे सब पत्थर उठा-उठाकर लाने लगे और नदी में डालने लगे। यह सब देखकर रज्जब बोला- 'गुरुदेव! मैं नदी में लेट जाता हूँ और आप मेरे शरीर पर पैर रखकर नदी के उस पार चले जाइए', और वह सचमुच वहाँ लेट गया। । यह देखकर संत दादू ने कहा- 'अरे! तुम यह क्या कर रहे हो? चलो, जल्दी उठो। यह सुनकर रज्जब बोला- 'आपके चरणकमलों से मेरा यह अपवित्र शरीर पावन हो जाएगा। मेरे शरीर की सार्थकता इसी में है कि वह निरंतर आपकी सेवा करता रहे।'
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy