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शिक्षाप्रद कहानिया देने के लिए कहा, लेकिन व्यापारी लोभवशात् रूपये देने में आना-कानी करने लगा।
अन्त में लुटेरे ने 'टिगर' दबा दिया। यह देखकर व्यापारी ने तो सोच लिया कि बेटा! अब तेरा बचना मुश्किल है। और डर के कारण उसने अपनी आँखें बन्द कर ली। जैसे बिल्ली को देखकर कबूतर आँखें बन्द कर लेता है।
__काफी देर बाद तक जब गोली नहीं चली तो व्यापारी ने पुनः धीरे-धीरे डरते हुए अपनी आँखें खोली तो सामने का नजारा देखकर वह हैरान हो गया और खुश भी होने लगा। लुटेरा बार-बार बन्दूक चलाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन बन्दूक थी कि चल ही नहीं रही थी। और अन्त में थक-हार कर लुटेरा वहाँ से भागने की सोचने लगा। उसे डर हो गया था कि कहीं व्यापारी उसको पकड़कर रक्षकों को न सौंप दे। अतः वह वहाँ से दुम-दबाकर भाग गया। तब व्यापारी ने चैन की सांस ली और घोड़े पर सवार होकर अपनी यात्रा पुनः प्रारम्भ कर दी।
___ जानते हो! इस मुसीबत से व्यापारी को छुटकारा किसके कारण मिला? उसी बारिश के कारण जिसे थोड़ी देर पहले तक व्यापारी भला-बुरा कह रहा था। क्योंकि बारिश के कारण ही बन्दुक का बारूद गीला हो गया था।
इसके बाद व्यापारी के मन में यह चिन्तन चलने लगा कि आखिर यह सब कमाल हुआ कैसे? लेकिन थोड़ी देर बाद ही उसकी समझ में सारी बात आ गई। और अब वह उसी बारिश का बार-बार धन्यवाद देने लगा।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अपने थोड़े से कष्ट के कारण बिना सोच-समझे एकदम कुछ भी भला-बुरा नहीं कहना चाहिए। इसीलिए शास्त्रों में भी कहा जाता है कि
सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदाम्पदम्। वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलब्धाः स्वयमेव सम्पदः॥