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शिक्षाप्रद कहानियां
स्वतंत्र हूँ, सिद्ध परमात्मा की जाति का हूँ।
क्या कर रहा हूँ मैं? उलूं, चलूँ, और अपने स्वभाव में विराजमान हो जाऊँ। मैं अकेला हूँ अकेला ही पुण्य-पाप करता हूँ अकेला ही पुण्य-पाप भोगता हूँ, अकेला ही अपने शुद्ध स्वरूप की भावना कर सकता हूँ और अकेला ही मुक्त हो सकता हूँ। मैं सचेत हो जाऊँ किपर पर ही है, पर में निजबुद्धि करना ही दुःख है; स्वयं में आत्मबुद्धि करना सुख है, हित है, परम अमृत है। वह मैं ही तो स्वयं हूँ। पर की आशा छोडूं, अपने में मग्न होने की धुन रखू। सोचूँ तो यही सो परमात्मा का स्वरूप। उसकी भक्ति में लीन रहूँ। प्राणियों की सोचूँ तो यही सोचूँ कि उनका हित किस प्रकार से हो। लोगों से बोलूँ तो हित, मित, प्रिय वचन बोलूँ। करूँ तो ऐसा करूँ जिससे किसी भी प्राणी का अहित न हो, घात न हो।
७०. मानसिक प्रदूषण पर्यावरण आज न केवल भारत की अपितु विश्व की एक विशालतम समस्या बन चुकी है। सम्पूर्ण विश्व के बड़े-बड़े मूर्धन्य मनीषी इससे अत्यन्त चिन्तित हैं और शीघ्र ही कोई ठोस हल ढूँढ लेना चाहते हैं। वे इतने चिन्तित हैं कि यदि पर्यावरण प्रदूषण की इस समस्या का कोई हल नहीं निकला तो शीघ्र ही पृथ्वी पर जीवन मुश्किल ही नहीं असम्भव हो जाएगा।
वर्तमान वैज्ञानिक पर्यावरण प्रदूषण को मुख्यतया तीन प्रकार का बतलाते हैं-जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण। किन्तु हम समझते हैं कि उक्त प्रदूषणों में मानसिक प्रदूषण को भी जोड़ा जाना चाहिए क्योंकि लगभग उक्त तीनों प्रकारों में मानसिक प्रदूषण ही मूल कारण सिद्ध होता है। जैसा कि अनेक धार्मिक, आध्यात्मिक एवं दार्शनिक चिन्तकों का मत भी है। मन की मलिनता अज्ञान एवं राग-द्वेष आदि भावों से निर्मित होती है और यह सुस्पष्ट है कि उक्त तीनों प्रकार के प्रदूषणों के प्रचार-प्रसार में मन की ऐसी मलिनता की ही अहम् भूमिका सिद्ध होती है यदि मनुष्य अज्ञानी न हो और अपने राग-द्वेष में अत्यधिक