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________________ 146 शिक्षाप्रद कहानियां ६४. श्रम ही सौं सब मिलत है, बिन श्रम मिले न काहि हमारे देश में सदा से ही सूक्तियों का विशेष महत्त्व रहा है। सूक्तियों का अर्थ बड़ा गंभीर होता है। उनके पीछे अनेक प्रेरक प्रसंग भी अवश्य छिपे रहते हैं। ऊपर शीर्षक में लिखित सूक्ति प्रायः संसार की सभी भाषाओं में थोड़े-बहुत हेर-फेर के साथ उपलब्ध होती है, जिसका अभिप्राय है कि परिश्रम से मानव जीवन का घनिष्ठ संबंध है। संसार में परिश्रम के द्वारा ही मनुष्य को सब कुछ प्राप्त हो सकता है। परिश्रम के बिना संसार में किसी को कुछ भी प्राप्त नहीं होता, जीवन की सम्पूर्ण सफलताएँ परिश्रम की ही देन है। इस महत्त्वपूर्ण तथ्य को इस कहानी द्वारा भी भली प्रकार से समझा जा सकता है एक सेठ जी के चार पुत्र थे। वे सभी आलसी थे, परिश्रम बिल्कुल नहीं करते थे। एक दिन सेठ जी ने अपना अंतिम समय निकट जानकर पुत्रों से कहा- 'हे पुत्रों ! देखो मैं अब जा रहा हूँ लेकिन, जाते-जाते तुम्हें एक बात समझाना चाहता हूँ।' पुत्रों ने कहा- 'हाँ जी पिता जी! जरूर समझाइए, हम आपकी आज्ञा का अवश्य पालन करेंगे।' सेठ जी बोले- 'पुत्रों! हमेशा छाया में ही जाना, छाया में ही आना और खूब मीठा खाना, जीवन में बहुत सफल होओगे।' इतना कहकर सेठ जी स्वर्ग सिधार गए। अब वे चारों छाता लेकर घर से निकलते और छाता ही ओढ़कर सब काम करते । शरीर को बिल्कुल धूप नहीं लगने देते तथा खूब मिठाइयाँ खाते। थोड़े दिन बाद सेठ जी द्वारा संचित की गई जमा पूँजी समाप्त हो गई और वे बड़े परेशान रहने लगे। एक बार उन्हें उनके पिता जी के एक मित्र मिले। उन्होंने समझाया कि तुम्हारे पिता जी का अभिप्राय था कि सूर्य उदय होने से पहले काम पर जाना और सूर्य अस्त होने के बाद ही घर लौटना, खूब
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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