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शिक्षाप्रद कहानिया
129 आज उनसे अपना भविष्य पूछने गई थी। उन्होंने मेरी जन्म-कुण्डली देखकर बताया कि तुम अस्सी साल तक जीवित रहोगी। मैं यह सोच-सोचकर परेशान हो रही हूँ कि अस्सी साल में मैं कितना अनाज खा जाऊँगी, कितने कपड़े पहनूँगी, कितने गहन बनवाऊँगी, इतना पैसा कहाँ से आएगा?'
यह सुनकर सेठ जी बोले- 'अरे बुद्ध! बस, इतनी-सी बात। ये भी भला कोई पेरशानी की बात है क्या? ये सब खर्चा एक दिन में ही थोड़े ही होगा। समय के साथ-साथ हमारी आमदनी भी बढ़ती जाएगी, बच्चे भी जवान होंगे, वे भी कमाएंगे। अतः समय के साथ-साथ हमारा खर्च चलता जाएगा। तू व्यर्थ में ही चिंता करती है।'
इतना सुनते ही पत्नी बोली- 'फिर आप भला रोज व्यर्थ की चिंता करके क्यों स्वयं दुःखी होते हैं? और हमें भी दुःखी करते हैं। क्या ये उपदेश जो अभी-अभी आपने दिया है वह आपके ऊपर लागू नहीं होता क्या? या उपदेश केवल दूसरों के लिए ही होता है? आप भी ऐसा क्यों नहीं सोचते हैं कि समयानुसार यदि समस्याएं आएंगी, तो उनका हल भी निकालते रहेंगे।' सेठ जी को अपनी भूल समझ में आ गई। और उसी दिन से उन्होंने चिंता करनी छोड़ दी।
मैं यहाँ यह कहना चाहता हूँ कि जो दूसरों को उपदेश देने की बात है। यह हम सब करते हैं। हम सब भी दूसरों को समझाने में खूब माहिर होते हैं, लकिन खुद समझने में हमारी नानी मर जाती है। जिससे हम नित नई चिन्ताओं से जुझते रहते हैं। यहाँ तक कि हम मानसिक रोगी बन जाते हैं। जो कि अत्यन्त भयावह स्थिति है। मैं यहाँ यह भी कहना चाहूँगा कि हम सबको सोचना चाहिए लेकिन क्या सोचना चाहिए? अगर भूतकाल में हमसे कोई गलती हो गई हो, कोई पापकर्म हो गया हो, किसी का अहित हो गया हो तो हमें यह जरूर सोचना चाहिए कि भविष्य में फिर कभी भूल से भी मुझसे यह गलती दोबारा न हो जाए। इससे आपका भविष्य स्वयं ही सुधर जाएगा। किसी ज्योतिषी से आपको सलाह लेने की जरुरत नहीं पड़ेगी। और हाँ यहाँ यह भी स्पष्ट करना