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शिक्षाप्रद कहानिया
यह सुनकर युवक आश्चर्यचकित होते हुए बोला- आप याद कीजिए एक बार आप चिकित्सालय में गए थे, मैं बहुत बीमार था। मेरे पास पैसे नहीं थे। डॉक्टर ने तुरन्त बीस हजार रूपये जमा करने के लिए कहा था। मैं बहुत हताश, परेशान था, क्योंकि अगर समय रहते पैसे जमा न होते तो मेरा जीवित रहना सम्भव नहीं था। उस समय आपने ही पैसे जमा करके मेरे प्राणों की रक्षा की थी। आप कहते हैं कि- मुझे तो याद ही नहीं है।
यह सुनकर व्यक्ति अपने बीते दिनों के बारे में सोचने लगा। और थोड़ी ही देर में उसे याद भी आ गया कि ऐसी घटना हुई थी और मैंने रूपये दिए थे। लेकिन कुछ देर सोचने के बाद वह बोला- मित्र, हाँ मुझे याद आ गया कि मैंने रूपये दिए थे। परन्तु यह तो मनुष्य का स्वाभाविक धर्म/कर्तव्य है कि वह मुसीबत में पड़े हुए प्राणी की सहायता करे। अतः अब आप इन पैसों को अपने पास ही रखें। हाँ, इतना जरूर करें कि अगर आपको भी कोई जरूरतमन्द व्यक्ति मिले तो ये रूपए आप उसको दे दें और अगर आपके पास भी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाए तो आप भी उस व्यक्ति को यही कहें कि वह भी आगे इसी प्रकार किसी जरूरतमन्द की सहायता करे। बस यही हमारा कर्तव्य है, धर्म है।
यह सुनकर वह युवक उनसे अत्यन्त प्रभावित हुआ और हकीकत में ही एक दिन उसे एक जरूरतमन्द व्यक्ति मिला और उसने उन रूपयों में बीस हजार रूपये और मिलाकर उस व्यक्ति की मदद की
और उसे भी वही सलाह दी जो उस व्यक्ति ने उसे दी थी। धीरे-धीरे ऐसे लोगों की बहुत बड़ी संख्या हो गई और बहुत सारे पैसे भी इकट्ठे हो गए फिर उन सबने एक चिकित्सालय का निर्माण किया। वहाँ पर आज भी निःशुल्क चिकित्सा प्रदान की जाती है।
__ इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हम सबको नि:स्वार्थ भाव से एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए। यही सबसे बड़ा धर्म है। इसलिए कहा भी जाता है कि