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मुझे अपनी सजा से कोई शिकायत नहीं है।
चौथे कैदी की बात सुनकर राजा बहुत प्रभावित हुआ। उन्होंने गौर से देखा और अनुभव किया कि उसकी बातों में पश्चाताप झलक रहा है। उन्होंने उसे न सिर्फ तुरन्त रिहा कर दिया अपितु उसे जेल में ही सिपाही की नौकरी पर रख लिया । और उन तीनों को सख्त से सख्त सजा देने का निर्देश दे दिया ।
शिक्षाप्रद कहानियां
इस कहानी से हम सबको यही शिक्षा लेनी चाहिए कि सदा सत्य का आचरण करना चाहिए।
४८. मित्र का लक्षण
पापान्निवारयति योजयते हिताय, गुह्यं निगूहति गुणान् प्रकटीकरोति । आपद्गतं च न जहाति ददाति काले, सन्मित्रलक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तः ॥
अर्थात् जो पाप से बचाता है, हित में लगाता है, दुर्गुणों को छिपाता है, गुणों को प्रकट करता है, आपत्ति के समय साथ देता है अर्थात् मुसीबत के समय साथ नहीं छोड़ता, सन्तों ने उसे ही समित्र कहा है ।
हमारे देश में सुक्तियों, कथाओं, कहानियों और सुभाषितों का महत्त्व प्राचीन काल से ही रहा है और वर्तमान में भी है तथा भविष्य में भी रहेगा। पहले तो इन्हीं के माध्यम से बच्चों को विद्या का अध्ययन कराया जाता था। बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं तक को इन्हीं के माध्यम से शिक्षा दी जाती थी। विष्णुशर्मा का ' पञ्चतन्त्र' इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। गूढ़ एवं गम्भीर बात भी इनके माध्यम से ऐसी सरल - सरस और मधुर शैली में समझा दी जाती है कि शायद ही कोई मनोयोग से सुनने-समझने के बाद भूलता हो। इसीलिए इन्हें रत्नों तक की संज्ञा प्रदान की गई है