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________________ शिक्षाप्रद कहानियां चरवाहा तो पहले से ही तैयार था और तुरन्त बोला- 'कौन-सी गायें? क्या आप महात्मा बुद्ध के वाक्य को भूल गए हो? वे तो कब की मर चुकी । देने वाला भी मर गया और उनको चराने वाला भी मर गया। अतः अब आप अपने घर जाओ और 'सर्वं क्षणिकम्' का मन लगाकर जाप करो और उसे समझो। 97 यह सुनकर बौद्ध दार्शनिक सकपका गया। स्वयं का तर्क जाल स्वयं को फँसा गया। और वह सोचने को मजबूर हो गया। कुछ देर सोचकर वह बोला- ‘अच्छा ठीक है भाई ये लो अपनी मजदूरी और मेरी गाएं मुझे लौटा दो।' और चरवाहे ने मजदूरी लेकर गायें लौटा दी। अब आप ही बताइए कि क्या यथार्थ के साथ हमें व्यवहार का ज्ञान होना चाहिए या नहीं? व्यवहार के बिना यथार्थ की मंजिल पर पहुँचना शायद सम्भव ही नहीं। इसीलिए हमेशा विचार के साथ - साथ आचार की भी बात की जाती है। दर्शन को हमने केवल मानसिक खेल बना लिया है, जो कि अत्यन्त घातक है। और जब तक यह मानसिक खेल और दर्शन की प्रतियोगिताएं चलती रहेंगी तब तक न धर्म-धर्म होगा, न दर्शन - दर्शन होगा और न यथार्थ - यथार्थ होगा। ४४. प्रेम की कैंची उधार एक बार की बात है। एक गुरु और एक शिष्य जंगल में गंगा किनारे पर्णकुटी बनाकर रहते थे। गुरु की पर्णकुटी गंगा के दक्षिण की ओर थी और शिष्य की उत्तर की ओर । एक दिन शिष्य अकेला बैठा विद्याध्ययन में लीन था। उसी समय कहीं से घुमता घामता मणिकण्ठ नाम का नागराज उसके पास आकर बैठ गया। कुछ समय पश्चात् जब शिष्य ने अपनी आँखे खोली तो नागराज को समक्ष देखकर आश्चर्यचकित हो गया। अपने मन की पवित्रता, गुरु के उपदेशादि के प्रभाव से न तो वह उससे डरा और न ही वहाँ से भागा। बल्कि, अपने सरल स्वभाव और 'अतिथिदेवो भव'
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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