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मंत्री जी, क्या करूं, सब्र होता नहीं। मैं सब समझता हूँ, पर रोना रुकता नहीं। वही पुत्र,
मेरा प्यारा पुत्र, हर समय आंखों के सामने...
क्या किया जाये महाराज | जो हुआ बहुत ही बुरा हुआ, परन्तु ब्रह्मगुलाल ने यह अच्छा नहीं किया।
मंत्री जी, जो मेरे भाग्य में बंदा था, वही तो हुआ। इसमें उस बेचारे का क्या दोष ?. वह तो सच्चा कलाकार है। जो रूप धारण करता है, उस रूप ही हो जाता है वह तो बेचारा
क्या मतलब है तुम्हाराक्या उसने जान-बूझ कर ऐसा किया ?
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राजन्, यह तो ठीक है, परन्तु क्या वह यह भी भूल गया कि वह क्या करने जा रहा है।
महाराज, मैं यह तो नहीं कहता, परन्तु यह सब अनजाने में हुआ हो, ऐसा भी मैं मानने को तैयार
नहीं ।
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