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जैन चित्रकथा बारात जूनागढ़ के दुर्ग के मुख्य द्वार के समीप पहुंचती है। दिव्य, भव्य,सुन्दर अलंकारों से सज्जित राजकुमारी दुर्ग के मार्ग में बने विशाल-सुन्दर स्वागत स्थल पर अपनी सहेलियों के साथ वरमाला लिये बारात की प्रतीक्षा कर रही है। सखियाँ सहेलियाँ गा रही है।
तेरा अमर रहे सिन्दूर तेरा..
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बारात दुर्ग के निकट आती है। पथ की एक ओर एक बाड़े में नेमिनाथ का हृदय करुणासे भरजाताहै| हिरण व विभिन्न जाति के पालतू पशुबंद है। राजकुमार नेमिनाथ इन पशुओं की चीत्कार सुनकर विचलित होजाते हैं। (सारथी। यह झूठ है।
आदि तीर्थकर कृषभदेव के सारथी ! ये कैसी करुण आवाजें आ
| स्वामी! वंशज मांसनहीं | रही हैं? इन पशुओं को क्यों बन्दी
बारात में समीजाति खाते । स्वामी। बनाया गया है?
के लोग सम्मिलित / आपको पता नहीं?
हैं। विवाह में मांस AMA आश्चर्य,आपके विवाह पर AND
तो प्रीतिभोजकी) आयोजित मोज में इन पशुओACERAMAN - शोभा है। का माँस खाने को देंगे।