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राजुल इन्द्र ने कुछ छण ध्यान लगा कर सोचा।
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सहसा इन्द्र के मुरव मण्डल पर मुस्कान उभरती है और वे शचि और देवी-देवताओंसेकहते है। | देवीशचि! महान शुभ संकेत है। गिरनार पर्वत पर श्रमण नेमिनाथ को केवलज्ञान प्राप्त हुआ है। तीर्थंकरों की परम्परा में वें २२ वे तीर्थंकर होगये हैं।
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