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जैन चित्रकथा दिगम्बर मुद्रा में पद्मासन विराजमान नेमिनाय के सम्मुख कर्तव्य विमूढ राजुल खड़ी थी। स्वामी। एक बार राजुल का रुपऔर सौन्दर्य देव लेते। पशुओं की भाँति मुझ पर भी करुणा करो।
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साधना में ध्यान मग्न श्रमण नेमिनाथ मौन थे, मौनही | “विस्मय-आश्चर्य सेराजुलचारों रहे, राजुल को लगा जैसे कोई कहरहा हो
ओर देखती है। भयानक जंगल के
अलावा कुछ नहीं दिखता। B देवी रूप और सौन्दर्य नश्वर है। इसे पाया है
भयानक जगल हा कोई किसी 2- तोरवोना पड़ेगा।।
मैं अकेली हूँ। करुणा करो।
पर दया नहीं करता।जैसा
बोते हैं, वैसा काटते हैं।
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