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________________ सुन्दरी इस स्थान के दर्शन कर बहुत प्रसन्न हुई। उसका आत्म विश्वास प्रातःकाल प्रसन्नता से भरकर नाना प्रकार के सुंदर वस्त्राभूषणों बढ़ गया ।जीवन के रेगिस्तान में पुन: जलधारा का दर्शन हुआ। नर्मदा के | से सज्जित हो सुन्दरी अपने पति सहदेव और उसके साथियों के तट पर पहुँच कर उसका हृदय शीतलता से भर गया। आँखों के सामने | साथ मज्जन क्रीड़ा एवं विनोद करने के लिए महानदी रेवा के स्वच्छ नीला शीतल जल छलकने और लहराने लगा। मर्मव्यथा के पर्दे | तट पर पहुँची वहाँ नदी के गंभीर लहरों को देखकर उसका मन हटने लगे, दक्षिण पवन देश-विदेश के पुष्पों का गंध उड़ा लाया था। न | शान्त हो गया, उसकी यह शान्ति उपलब्धिजन्य नहीं तृप्ति जन्य जाने कैसी गंध सुन्दरी के मन को विभोर कर रही थी। उदित होते हुए थी। प्रतिदिन स्नान करते हुए एक महीना पोषके लघु कायदिन सूर्य की रश्मियाँ नर्मदा की तरंगों के साथ क्रीड़ा कर रही थी। चारों ओर के समान सहज ही निकल गया। सुन्दरी के तन-मन सौन्दर्य के भवर उठ रहे थे। दृष्टि ठहर नहीं पाती। सम्मोहन के इस लोक | | दोनों स्वस्थ है। उसे अपार तृप्ति का अनुभव हुआ है। कषाय के में समस्त रागिणियाँ बज उसके मानस संगीत में मुर्छित होती जाती थी। उद्वेग और दैहिक स्फूर्ति के साधनों ने उसे कृतार्थ बना दिया है। सुन्दरी का मन न मालूम किन कल्पना लहरों के साथ उलझ रहा था। उसके कुन्दोज्जवल देह पर तेज पराक्रम उभरता जा रहा था। उसकी सम्पूर्ण इंद्रियाँ प्राण की उसी एक ऊर्जस्वल धारा में विलीन हो गयी थी। स्थान की रमणीयता ने सहदेव को आकृष्ट किया। यहाँ के कण-कण ने उसके मन और अन्तरात्मा को संतुष्ट कर दिया। इस तट पर नाना देशों के व्यापारी भी पधारे, जिससे क्रय-विक्रय का सुअवसर प्राप्त हुआ। इस समय सहदेव को अपने माल में बहुत लाभ हुआ। यह सत्य है कि जब अनुकूल समय आता है तब सभी विभूतियाँ स्वमेव प्राप्त हो जाती है । भाग्य के प्रतिकूल रहने पर संचित भी नष्ट हो जाता है। सहदेव का शुभोदय विभूति प्राप्ति का कारण बना हुआ है। अतः अभ्दुत वैभव प्राप्त कर उसका मन वहीं पर बस जाने का करने लगा। उसने अपने साथियों के समक्ष प्रस्ताव रखा श्रेष्ठिवर्य! आपका विचार सुन्दर है, मैं भी यह स्थान मुझे सुन्दर प्रतीत होने के साथ शुभ आपके इस प्रस्ताव का अनुमोदन करता हैं। आप यहाँ एक नगर बसाइये तथा इस मालूम पड़ता हा यहा आत हा मरा वह सामान बिकनगर को एक प्रमुख व्यावसायिक नगर बना दीजिये। यहाँ यातायात की सभी । गया जो वर्षों से सड़ रहा था। जिसकी रकम डूब सुविधाएँ वर्तमान है। जलपोतों के साथ-साथ स्थलमार्ग से भी सामान लाने चुकी थी, वह वसूल हो गयी है। अतएव मेरा विचार में कठिनाई प्रतीत नहीं होगी। यह भूमि भी पर्याप्त लम्बी चौड़ी पड़ी हुई है। पशुओं है कि यहाँ एक नगर बसाकर हम लोग रहने लगें।। के लिए चारागाहों की भी यहाँ कमी नहीं है। जल प्राप्ति की पूरी सुविधा है। अत: व्यावसायिक दृष्टि से यह स्थान नगर बसाने के सर्वथा उपयुक्त है। जैन चित्रकथा
SR No.033234
Book TitlePrey Ki Bhabhut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Jain
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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