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देवी! जल में विहार करने वाले प्राणी प्रत्येक हलचल के साथ राजा हो या रंक, ब्राह्मण हो शुद्र, विद्वान हो स्वामिन! मेरे मन में नर्मदा नये मार्ग की रचना करते है। लक्ष्य की ओर बढ़ने वाला या मूर्ख जो कठोर श्रम करता है, संघर्ष की चंचल लहरों में निरंतर
को महत्त्व देता है जीवन जितना कठोर होता है। करता है ओर दुर्गम दुलंघ्य स्थान में भी स्नान करने की भावना व्यक्ति उतना ही ऊँचा उठ जाता है। जो संघर्ष से बचकर पूर्व मार्ग तैयार कर लेता है, वह उन्नति के गिरि उत्पन्न हुई है। इस दोहद के निर्मित मार्ग पर ही चलने का प्रयास करता है, वह जीवन में|
|शिखर पर चढ़ जाता है। परिश्रम से संसार होने से मेरा कभी भी आगे नहीं बढ़ सकता । नदी सरोवर और गढ़ों में पड़ा
में कुछ भी असाध्य नहीं है। असम्भव औरी
क्षीण हो रहा है तथा शरीर भूतल का जल संघर्ष करता है, सूर्य किरणों से संतप्त होता
असाध्य शब्द कायरों के शब्दकोश में|
के साथ मेरी अन्य शक्तियाँ है तो वह रवि रश्मियों के सहारे ऊपर उठ जाता है, सारी,
निवास करते हैं। अतः तुम अपने मन की|
भी लुप्त होने लगी है।
इच्छा व्यक्त करो, मैं उसे अवश्य पूर्ण गंदगी और मैल नीचे रह जाते है।
करूँगा।
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यद्यपि में यह समझती हूँ कि व्यक्तित्व शुद्धि की दृष्टि से इस स्नान का | पली के दोहद को पूर्ण करने के लिए सहदेव ने अपने मित्रों कुछ भी महत्व नहीं है, तो यह दोहद इच्छा मेरे परम्परा गत विश्वासों का | सहित प्रस्थान किया। उसने प्रसन्नतापूर्वक जलयानों की व्यवस्था समर्थन कर रही है। जीवन का अर्थ है शरीर और आत्मा का सम्बन्ध ।
की और नाना प्रकार के वैभव सहित नर्मदा के लिए चल दिया। जहाँ शरीर आत्मा के लिए होता है, आध्यात्मिक विकास में सहयोग
वह अपने साथियों सहित जिस नगर में पहुँचता, वहीं अत्यन्त प्रदान करता है, वहाँ जीवन प्राणवान बन जाता है। इसके विपरीत जहाँ
अभ्युदय पूर्वक भगवान की पूजा करता। चैत्यालयों के शरीर अपने आप में साध्य बन जाता है, आत्मा के विकास की उपेक्षा की
जार्णोद्धार की व्यवस्था करता और चतुर्विध संघ को जाती है। वहाँ चेतन के स्थान पर जड़ की पूजा आरम्भ हो जाती है। यानि |
समृद्ध बनाता। इस प्रकार सुखपूर्वक चलता हुआ वह नाना कि जीवन के स्थान पर मृत्यु की पूजा होने लगती है। अतः क्रियाशीलता |
वन और अमराईयों से सुशोभित रेवा नदी के निकट पहुँचा। और विवेक को अपनाये रखना ही कार्य सिद्धि का मूलमंत्र है।
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प्रेय की भभूत