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________________ विपत्ति और दुःखों का निराकरण पञ्च नमस्कार मंत्र के चिन्तन से होता है। इस मंत्र का स्मरण करते ही दुःख काफूर हो जाते हैं और संसार के सभी सुख उपलब्ध होने लगते हैं। आमोत्थान का साधन वीतरागता है, जो वीतरागी है, राग द्वेष से रहित हैं, वही शाश्वत सुख को प्राप्त कर सकता है। जो साधनालीन तपस्वी है वह सुकुमाल मुनि की तरह भयानक से भयानक उपसर्ग आने पर भी विचलित नहीं होता। अतएव मैं भी अपने व्रतचार में दृढ़ होऊंगी और आत्मचिन्तन करती हुई अपने समय का यापन करूँगी समय परिवर्तनशील है । नर्मदा सुन्दरी के भाग्य ने पलटा खाया।शून्यद्वीप के दु:खों का अन्त निकट आ गया । वह धर्म ध्यान में लीन रहती थीं, पञ्च नमस्कार मंत्र का चिन्तन करती थी तथा प्रतिदिन भावभक्ति करती हुई शरीर धारण हेतु फलहार करती थी। इस प्रकार उसे उसद्वीप में निवास करते हुए पर्याप्त समय बीत गया। 19 अकस्मात् एक दिन जलाभाव हो जाने से वीरदास का जलयान भूतरमण नामक शून्यद्वीप में पहुँचा । निस्संदेह इस द्वीप के जल कुण्ड का नीर अमृत के समान सुस्वादु था। निर्जन होने पर भी फलादि ग्रहण करने के लिए जब तब जलयान वहाँ आते रहते थे। आज वीरदास का शिविर इस द्वीप में स्थित था। उसके साथी जल भरने के लिए गये हुए थे और वह वृक्ष समूह की शोभा का अवलोकन करता हुआ वहाँ आया, जहाँ नर्मदा सुन्दरी ध्यान लगाये हुए अवस्थित थी। उसने उसे देवकन्या या नागकन्या समझा। वीरदास नर्मदा के पास पहुँचा और उसे देखतेही आश्चर्यचकित हो गया। उसने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि यहाँ उसकी भतीजी नर्मदा मिलेगी। उसके मन में आशंका हुई किनर्मदा के रूप में यह कोई व्यन्तरी या किन्नरी तो नहीं है । सम्भवतः मुझे धोखा देने के लिए इसने यह रूप धारण किया है। नर्मदा तो अपने पति महेश्वर के साथ यवन द्वीप को गई हुई है, वह यहाँ कहाँ से आ सकती है। अवश्य यह कोई प्रपंच है। www DImriti رررر ( اررررررلار FunnAN cmmm.NE Nati Simil ارزاني Mammupane Thili प्रेय की भभूत
SR No.033234
Book TitlePrey Ki Bhabhut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Jain
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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