SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रातःकाल होने पर जलयान भूत रमण द्वीप में पहुँचा और वहाँ लंगर डाल दिये। सभी जल लेने के लिए चल पड़े । महेश्वर ने नर्मदा से | प्रिये जब तक अन्य साथी जल लेकर आते हैं तब तक तुम्हें यहाँ के मनोरम उद्यानों का परिभ्रमण करा देना चाहता हूँ। यहाँ की भूमि बहुत ही सुन्दर है और आगे चलने पर प्रकृति का रमणीय साम्राज्य व्याप्त मिलेगा। हम लोग उस रम्यदृश्य का अवलोकन कर कृतार्थ हो जायेंगे। वहाँ हमे सुस्वाद फल और सुगंधित पुष्प मिलेंगे। HINTAMIRRORMAuramm LGANA LAIDGP2009 आगे बढ़ने पर आम, नारियल, जामुन, नींबू, नारंगी, दाडिम.|| इस प्रकार निवेदन करती हुई नर्मदा ने एक लता मण्डप के नीचे पल्लव द्राक्षा आदि के वृक्ष और लताएं उपलब्ध हई पर आश्चर्य की। और पुष्पों की शय्या तैयार की। थोड़े समय तक विश्राम करने हेतु वह बात यह थी कि वहाँ एक भी मनष्य दिखलाई नहीं पड़ता था ।। लेट गई और उसे निद्रा आ गई। नर्मदा को सोते देख कर महेश्वर दत्त वह स्थान वीरान था, बिल्कुल एकान्त और सुनशान था। बहत प्रसन्न हुआ। उसके हृदय में क्रूरता की भावना पहले से ही व्याप्त एक स्थान पर लता मण्डप.देखकर नर्मदा ने प्राणेश्वर से थी। अतः वह उस सुन्दरी को वहीं सोती हुई छोड़ कर चल दिया। थी। अतः वह उस सन्दरी को वहीं सोती हई छोड निवेदन कियाJप्रियतम! मैं बहुत थक गई हूँ अतः अपने स्थान पर आकर उसने जलपोत के लंगर खोल दिये। पाल तानने के कारण जलपोत बड़ी तेजी से समुद्र का वृक्षस्थल चीरते हुए मेरी इच्छा यहाँ विश्राम करने की हो रही है। यद्यपि यह आगे बढ़ने लगे। सभी साथियों के साथ महेश्वर दत्त आनन्दित होता स्थान वीरान है पर है अत्यन्त रमणीय।इस कदली घर की छाया कितनी मनोहर है, यहाँ बैठते ही शीतलता का हुआ चला जा रहा था। अनुभव होता है। N जैन चित्रकथा
SR No.033234
Book TitlePrey Ki Bhabhut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Jain
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy