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अगले दिन प्रातः हनुमान जी ने अपने मंत्रियों से कहा कि वह वैराग्य ले रहे हैं। यह सुन सभी लोग दुखी हो गए। हनूमान जी ने उन्हें समझाया। फिर हनूमान जी चैत्यवान नामक वन मैं गए। वह उत्तम मुनि योगीश्वर के पास गए।
हे भव्य ! तुम्हारा विचार उत्तम है। आत्म कल्याण के लिए तुम अवश्य दीक्षा लो ।
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हनूमान जी घोर तप के धारक, तेरह प्रकार के चरित्रों को पालते हुए विहार करने लगे।
हे नाथ! मैं संसार में भ्रमण करते-करते थक गया हूँ। मुझे मुक्ति
के लिए आप दिगम्बरी दीक्षा देने की कृपा करें।
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तब हनुमान जी ने सब परिग्रह त्याग कर अपने हाथों से केशलोंच किए और महाव्रत को अंगीकार कर दीक्षा ली और दिगम्बर हुए।
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तप के प्रभाव से शुक्लध्यान उपजा शुक्लध्यान के बल से मोह का नाशकर, हनूमान जी को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ और वे 'तुंगीगिरि' से | सिद्ध पद को गये जहां वे अनन्त गुणमयी सदा निवास करेंगे।
महाबली हनुमान