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हे हनुमान, भामंडल और अंगद । तुम अभी अयोध्या जाओ और गंधोदक जल लेकर आओ।
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राजा द्रोणमेघ की कन्या विशाल्या सर्व विद्याओं में प्रवीण और जिन भक्त है। उसी के स्नान का जल गंधोदक कहलाता है। उस जल के छींटे मारने से
लक्ष्मण जी उठेंगे।
अब रावण सीता के पास गया। हे देवी! राम-लक्ष्मण को अब मृत ही समझ और मेरे साथ पुष्पक विमान में विहार करने चल ।
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हनूमान जी तत्काल अयोध्या गए। वहां भरत को सब हाल सुनाया। भरत ने विशाल्या को ही भेज दिया। वह ज्यों-ज्यों लक्ष्मण के निकट आती गयी लक्ष्मण की चेतना लौट आई और वह उठ बैठे। श्रीराम ने उन्हें गले लगा लिया।
हे रावण !
तूं युद्ध भूमि में श्रीराम से इतना ही कहना कि सीता तुम्हारे वियोग में बहुत दुखी है।
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रावण के कटु वचन सुन सीता अचेत हो गई। रावण को इससे बहुत दुख हुआ। उसके मन के भाव बदल
गए।
यदि अब मैं सीता को
लौटाता हूं तो लोग मुझे असमर्थ समझेंगे। अस्तु मैं राम को जीवित पकड़कर उसे सीता सौंदूंगा । इससे मेरी कीर्ति होगी और राम से मित्रता हो जाएगी।
महाबली हनूमान